पठानकोट स्थित अपने कैंप से बेस कैंप जाने के दौरान रामबन जिले में सेना का वाहन गहरी खाई में गिर गया। इसमें शहीद हुए बेगूसराय के अमरपुर निवासी जेसीओ सुजीत कुमार का अंतिम संस्कार हो चुका है ।उनके अंतिम दर्शन के लिए हजारों लोगों की भीड़ जुट गई।
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बिहार सरकार के मंत्री, जिले के अधिकारी और जनप्रतिनिधि आए, सबने सांत्वना दिया। अंतिम संस्कार के बाद अब पता नहीं कितने लोग उन्हें याद करेंगे या नहीं करेंगे। लेकिन शहीद सुजीत की विधवा सिंधु और उनके तीनों बच्चे संध्या, सोनम और किंशु के दिल पर ऐसा दर्द आ चुका है जो शायद कभी खत्म न हो।
पत्नी सिंधु को अपने पति की शहादत पर गर्व है, तो बच्चे भी देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले पापा पर गर्व कर रहे हैं। 3 मई की शाम से रात तक जब सुजीत की अपनी पत्नी, बच्चे और पिता से बात हुई थी, तो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि अगले कुछ घंटे के बाद उनके मौत की मनहूस खबर आएगी। अब सुजीत आएंगे तो तिरंगे में लिपटकर आएंगे।
एनडीए में ऑफिसर बनकर पापा के सपनों को करेंगे पूरा
शहादत के बाद पत्नी जहां उनके अधूरे सपने को पूरा करने की बात कह रही है। बच्चे भी कहते हैं कि पापा का सपना था कि एनडीए में जाऊं और मैं एनडीए में ऑफिसर बनकर पापा के सपनों को पूरा करूंगी।
पत्नी सिंधु ने बताया कि घटना वाले दिन सुबह 7:33 बजे बात हुई थी। सभी का हाल-चाल पूछा था, हमने पूछा था आप ठीक हो तो कहा था ठीक हूं। आतंकवादी घटना हो रहा है, इसलिए नहीं बताया कि कहां जा रहे हैं। लेकिन हमको लग गया कि वह कहीं जा रहे हैं। हम बोले आप जहां रहो ठीक रहो, जहां भी पहुंचिए हमको फोन कीजिएगा।
बोले थे कि वहां पहुंचते ही सबसे पहले आपको कॉल करूंगा। उसके बाद तो हम इंतजार में रह गए। फोन नहीं आया, खुद आ गए, लेकिन चलकर नहीं, तिरंगे में लिपट कर। मुझे बहुत-बहुत गर्व है, सुजीत बहुत ही अच्छे आदमी थे, पूरे दुनिया में सबसे अच्छे आदमी थे। इसलिए उनकी शहादत पर मुझे बहुत गर्व है, वह मुझे शक्ति दें, मेरे साथ चलें, मेरे मन-दिल में हमेशा जिंदा रहेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांगी मदद
प्रधानमंत्री से अनुरोध है मेरे पति तो देश के लिए शहीद हो गए, मेरी मदद करें। जब मेरे बेटे की पढ़ाई खत्म हो तो उसे सिविल सर्विस चाहिए। प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, बिहार के मुख्यमंत्री सबसे मैं अपील करती हूं कि सुजीत के अलावा मेरा कोई नहीं, तीनों बच्चे हैं। अपने पति से हिम्मत लेकर मैं कह रही हूं, शहीद की पत्नी का रिक्वेस्ट है, मेरे बच्चों को सिविल सर्विस चाहिए। जो भी आते हैं सिर्फ आश्वासन देकर चले जाते हैं, अब तक कोई मदद नहीं मिल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी सबकी सुनते हैं, शहीद की पत्नी की सुन लीजिए, अब मेरा कोई नहीं है।
बेगूसराय से बारो अमरपुर तक कोई भी सड़क बने, वह मेरे पति के नाम पर बने। जिससे वह मेरे दिल में तो जिंदा रहेंगे ही, सब लोगों के दिल में जिंदा रहेंगे।
बेटी को पिता पर है गर्व
बेटी संध्या ने बताया कि पापा से जब बात होती थी हमेशा आर्मी के बारे में ही बताते रहते थे। डिफेंटरी क्या होता है, कैसे ज्वाइन किया जाता है, कौन करता है, कैसे कोर डिवाइडेड है। हम दोनों के बीच हमेशा इसी की बात होती थी। मुझे एनडीए करना था और पापा इस संबंध में सारी बातें हमेशा बताते रहते थे, मुझे अपने पापा से बहुत गर्व है। वेरी प्राउड पापा है।
अंतिम बार 3 मई को रात में करीब 10:30 बजे बात हुई थी। उसमें भी उन्होंने पढ़ाई और हाल-चाल पूछे थे। कहे थे कुछ जरूरत है तो बता दो, रात हो गई थी हमने कहा था सुबह बात करूंगी। फिर कभी बात नहीं हो सकी, मेरे पापा तिरंगे में लिपट कर आए। मुझे पापा का सपना पूरा करना है।
मेरा, पापा और मम्मी सबका सपना था कि मैं आर्मी अफसर बनू। मैं अभी एनडीए का प्रिपरेशन कर रही हूं और सेना में अधिकारी बनूंगी, अपने पापा के सपनों को पूरा करूंगा।
कुछ जगह कहा जा रहा है कि गाड़ी का नट बोल्ट ढीला होने के कारण हादसा हुआ था। लेकिन मेरे पापा ऐसा कभी नहीं कर सकते, मेरे पापा को गाड़ी खोलने से बनाने तक आता था। वह खुद की गाड़ी को चेक नहीं करेंगे की गाड़ी का नट-बोल्ट ढीला है। अपना जान कौन जोखिम में डालता है।
लापरवाही से नहीं गई जान
एक तो इतना बड़ा एक्सीडेंट, मेरे पापा शहीद हुए। फिर कुछ लोग कह रहे हैं कि उनकी लापरवाही से हुआ है। लेकिन ऐसी बात नहीं है कि वह पहली बार जा रहे थे। ढेर सारी गाड़ियों को लेकर जाते थे, इतनी बड़ी लापरवाही नहीं कर सकते। मेरे पापा पर झूठा इल्जाम लगाया जा रहा है, प्लीज इसे बंद किया जाए।
रिश्तेदार प्रतिभा ने कहा कि मंत्री आए थे, 2 मिनट खड़ा होकर आए, कहे कि जहां तक होगा मदद करेंगे। लेकिन हम लोग इस बात से संतुष्ट नहीं हैं। जब शहीद के परिवार की बात सही तरीके से नहीं सुन सकते हैं तो क्यों आए। 5 मिनट रुकते, पूरी बात सुनते।
पूरे देश को पता है कि सुजीत देश के लिए शहीद हुए हैं, तो ऐसे में सरकार की भी कुछ जिम्मेदारी बनती है। बिहार और केंद्र की सरकार से मांग करते हैं कि मदद किया जाए। तीनों बच्चे हैं उनके पढ़ाई की व्यवस्था हो और जो भी मदद होता है करें।
शहीद की पत्नी और माता-पिता की मदद करें। सुजीत ने शहादत दी, लेकिन अब विधवा सिंधु तीन बच्चों को लेकर कैसे जीएगी। सरकार की जिम्मेदारी बनती है की मदद करें। लेकिन अभी तक किसी ने कोई मदद नहीं की है। हम किसी का विरोध नहीं कर रहे हैं, सिर्फ सरकार से मदद मांग रहे हैं। बहुत कठिन है, जिंदगी बहुत लंबी है, कैसे कटेगी जिंदगी, सरकार को इस पर संज्ञान लेना चाहिए।