कोलकाता8 मिनट पहले
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कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक पति का इस आधार पर तलाक मंजूर किया है कि उसकी पत्नी की दोस्त और परिवार उनके घर में पड़े रहते हैं और उस पर बोझ बने हुए हैं। साथ ही पत्नी ने उस पर क्रूरता के झूठे आरोप लगाए हैं।
जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य और जस्टिस उदय कुमार की डिविजन बेंच ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को पलट दिया है। ट्रायल कोर्ट ने पति की याचिका पर तलाक देने से इनकार कर दिया था।
जस्टिस भट्टाचार्य ने अपने आदेश में कहा कि पीड़ित ने अपनी याचिका में इस बात के सबूत दिए हैं कि उसकी पत्नी उसे प्रताड़ित कर रही थी। इसलिए उसकी तलाक की अर्जी मंजूर की जाती है।
हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद्द किया। फोटो प्रतीकात्मक है।
पति ने पत्नी के खिलाफ मानसिक क्रूरता का केस दर्ज कराया था
19 दिसंबर को अपने फैसले में कोर्ट ने कहा- याचिकाकर्ता के मना करने के बावजूद ईस्ट मिदनापुर जिले के कोलाघाट स्थित उसके घर में पत्नी की दोस्त और उसके रिश्तेदारों की लगातार मौजूदगी बनी रही। इसके चलते पति काफी परेशान हुआ। कई बार पत्नी के घर में न होने के बाद भी उसकी दोस्त और रिश्तेदार घर में पड़े रहते थे। इसके चलते याचिकाकर्ता के लिए सामान्य जीवन जीना मुश्किल हो गया था, जिसे क्रूरता माना जाएगा।
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस केस में पत्नी मनमाने ढंग से लंबे समय तक पति से शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करती रही। साथ ही दोनों के बीच कई बार लंबे समय के लिए अलगाव हुआ, जिससे संकेत मिलता है कि दोनों के वैवाहिक जीवन में आई दरार अब ठीक नहीं हो सकती है।
2005 में हुई शादी, 2008 में पति ने लगाई तलाक की अर्जी
पति के वकील ने बताया कि याचिकाकर्ता ने दिसंबर, 2005 में शादी की थी। शादी के तुरंत बाद से ही पत्नी ने अपना सारा समय अपनी दोस्त के साथ बिताना शुरू कर दिया। जिसके बाद 25 सितंबर 2008 को पति ने तलाक की याचिका लगाई। एक महीने बाद 27 अक्टूबर 2008 में पत्नी ने पति और उसके परिवार के खिलाफ IPC के सेक्शन 498A के तहत शिकायत दर्ज कराई।
पति के वकील ने बेंच के सामने क्रिमिनल कोर्ट के जजमेंट का भी जिक्र किया, जिसमें कोर्ट ने पति और उसके परिवार पर लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया था। वकील ने कहा कि केस दर्ज कराने का समय और केस खारिज होने से यह पता चलता है कि यह शिकायत बिल्कुल झूठी थी। ऐसे झूठे आरोप भी क्रूरता की श्रेणी में आते हैं।
कपल की शादी साल 2005 में हुई थी। 3 साल बाद पति ने तलाक की याचिका लगाई। फोटो प्रतीकात्मक है।