नई दिल्ली18 मिनट पहले
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भारत में महिलाओं की जनसंख्या 65 करोड़ से ज्यादा है। इसके बाद भी केवल 19 प्रतिशत यानी 12 करोड़ महिलाएं ही ऊंचे पदों पर काम कर रहीं है।
टीमलीज की एक रिपोर्ट के अनुसार एंट्री लेवल पर केवल 46 प्रतिशत पदों पर महिलाएं है।
ये रिपोर्ट महिलाओं के बीच बेरोजगारी दर पर भी प्रकाश डालती है, जो 2.9 प्रतिशत से बढ़कर 3.2 प्रतिशत हो गई है। इससे पता चलता है कि महिलाओं को नौकरी में स्थिरता और रोजगार हासिल करने के लिए लम्बा संघर्ष करना पड़ता है। इसकी बड़ी वजह लड़कियों की शिक्षा दर में कमी और असमानता है।
भारत की लिटरेसी रेट विश्व के एवरेज साक्षरता दर से भी कम
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में केवल 65% महिलाएं ही साक्षर हैं, जबकि पुरुषों की साक्षरता दर 80% है। भारत की राष्ट्रीय साक्षरता दर केवल 74% है, जो विश्व के एवरेज साक्षरता (83%) दर से भी कम है।
हालांकि, 2022-23 के आंकड़ों के अनुसार हाई सेकेण्डरी लेवल पर 48.3% लड़कियों का नामांकन हुआ है। महिला नामांकन में 38.4% की वृद्धि हुई है, जो 1.57 करोड़ से बढ़कर 2.18 करोड़ हो गई है।
घर और बच्चों की देखभाल में महिलाएं उलझी रह जाती है
जेंडर इक्वालिटी में सुधार के बाद भी वर्कफोर्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है। 2023 तक, महिलाओं के लिए वैश्विक श्रम बल भागीदारी दर 47% थी, जबकि पुरुषों के लिए यह 72% थी। दोनों की भागीदारी में लगभग 25% से अधिक का अंतर है।
यह असमानता काफी हद तक सामाजिक मानदंडों और लैंगिक अपेक्षाओं से प्रभावित है, जो महिलाओं को मुख्य रूप से देखभाल करने वाले और पुरुषों को कमाने वाले के रूप में बताता है। देखभाल और घरेलू जिम्मेदारियों का असमान वितरण महिलाओं की आर्थिक भागीदारी के लिए एक महत्वपूर्ण बाधा बना हुआ है।
औसतन, महिलाएं घर और बच्चों की देखभाल पर पुरुषों की तुलना में प्रतिदिन 2.8 घंटे अधिक खर्च करती हैं। रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक महिलाएं घर के काम-काज में पुरुषों की तुलना में प्रतिदिन 2.3 घंटे अधिक या 9.5% अधिक समय व्यतीत करेंगी।
2023-24 में भारत की वर्कफोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR) में लगातार वृद्धि देखी गई है। 15 साल या उससे ज्यादा के व्यक्तियों की वर्कफोर्स रेट 60.1% तक पहुँच गई है, जो साल 2022-23 में 57.9% थी। हालांकि, पुरुषों की LFPR रेट (80.6%), महिलाओं (43.7%) की भागीदारी से लगभग दोगुनी है।
महिलाओं के रोजगार को औपचारिक बनाने की जरूरत
मेघालय, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और सिक्किम मजबूत सांस्कृतिक स्वीकृति, आदिवासी अर्थव्यवस्था, मातृसत्तात्मक समाज, कृषि और हस्तशिल्प जैसे पारंपरिक उद्योगों पर निर्भरता के कारण महिलाओं की भागीदारी दर बेहतर है। इसके विपरीत, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, बिहार और पंजाब जैसे राज्यों में महिला कार्यबल भागीदारी सबसे कम है, जिसका मुख्य कारण शहरीकरण, सुरक्षा संबंधी चिंताएं, लैंगिक पूर्वाग्रह और रोज़गार विकल्पों की कमी है।
यह असमानता नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता को बताता है। जो महिलाओं के रोजगार को औपचारिक बनाने, कार्यस्थल सुरक्षा में सुधार, कौशल विकास का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित करती है। इन चुनौतियों का समाधान यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि भारत की आर्थिक प्रगति में कोई भी महिला पीछे न छूट जाए।
खेती में महिलाएं पुरुषों से भी आगे है।
भारत में एग्रीकल्चर सेक्टर में काम करने वाले लोगो में 76.9% ग्रामीण महिलाएं है। जबकि पुरुषों की संख्या केवल 49.4 % है।