इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। तीन जजों की पीठ ने स्पष्ट किया है कि अगर हाईकोर्ट ने किसी आपराधिक अपील में अभियुक्त के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है, तो मजिस्ट्रेट या सत्र न्यायालय को उसे रिहा करने का अधिकार नह
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न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा, न्यायमूर्ति पंकज भाटिया और न्यायमूर्ति मो. फैज़ आलम खान की पीठ ने यह निर्णय ‘आपराधिक अपील की सुनवाई की प्रक्रिया’ के मामले में दिया। पीठ ने 18 जनवरी 2024 को दो जजों की खंडपीठ द्वारा दिए गए पूर्व आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अभियुक्त से शपथ पत्र लेकर उसे जमानत पर रिहा किया जा सकता है।
शपथ पत्र लेकर उसे जमानत पर रिहा
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि अभियुक्त का वकील जानबूझकर सुनवाई में नहीं आता है या मामले में देरी की जाती है, तो कोर्ट न्याय मित्र नियुक्त कर अपील की सुनवाई कर सकती है। निचली अदालत को अभियुक्त की गिरफ्तारी की सूचना तुरंत हाईकोर्ट को देनी होगी।
एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है
यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इससे आपराधिक मामलों की सुनवाई में देरी को रोकने और न्याय प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने में मदद मिलेगी।