स्कूल बसों की जांच में बरती लापरवाही।
बिलासपुर सहित प्रदेशभर में 16 जून से स्कूल खुलने जा रहे है। इससे पहले ट्रैफिक पुलिस ने 200 से अधिक स्कूल बसों की जांच की। लेकिन, यह महज औपचारिक रहा। इस दौरान बस ड्राइवर आधे-अधूरे दस्तावेज लेकर पहुंचे, जांच में पता चला कि कई बसों में फिटनेस सहित अन्य
.
11 जून बुधवार की सुबह सवा 11 बजे पुलिस मैदान में पुलिस, यातायात और आरटीओ की तीन सदस्यीय टीम स्कूल बसों में चढ़कर महज एक मिनट रुक रही थी। फिर दूसरी- तीसरी बस। ऐसा करते-करते दोपहर के एक बज गए और 200 से अधिक बसों की जांच पूरी हो गई।
इसमें से ज्यादातर बसों पास कर दिया गया, जबकि कुछ को फेल। अगर सवा 11 बजे से एक बजे को मिनट में गिना जाए तो 160 मिनट होते हैं। यानी कि महज एक मिनट में बसों को फिट और अनफिट करार दिया गया है।
जबकि स्कूल बसों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जो 16 बिंदू निर्धारित किए हैं, उसे देखने में ही 10 से 15 मिनट लग सकते हैं। टीम ने ये निर्णय बस ड्राइवरों के पास पहले से मौजूद फिटनेस प्रमाण पत्र को आधार मानकर दिया है।
2 घंटे के अंदर 200 से अधिक स्कूल बसों की हुई जांच।
बच्चों की सुरक्षा को लेकर प्रशासन अलर्ट
एएसपी ट्रैफिक रामगोपाल करियारे का दावा है कि बच्चों की सुरक्षा को लेकर यातायात पुलिस अलर्ट है। इसके चलते स्कूल बसों के फिटनेस को लेकर सख्त रवैया अपनाया गया है। स्कूल खुलने से पहले बस संचालकों की मीटिंग बुलाई गई, जिसमें उन्हें बसों के साथ ड्राइवर को भी बुलाया गया।
इस दौरान पुलिस लाइन 200 से अधिक स्कूल बसों की जांच की गई। ट्रैफिक पुलिस के साथ ही आरटीओ और स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त टीम ने इस शिविर में बसों की मैकेनिकल फिटनेस, बीमा, टैक्स, परमिट, स्पीड गवर्नर, प्रदूषण सर्टिफिकेट और जीपीएस जैसे दस्तावेजों की बारीकी से जांच की।
खामियों को दूर करने दी गई चेतावनी
इस दौरान ट्रैफिक पुलिस के साथ ही आरटीओ और स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त टीम ने बसों की जांच की। जांच के दौरान बसों में फिटनेस के साथ ही बीमा सहित अन्य दस्तावेजों की कमी पाई गई। अफसरों ने इन सभी खामियों को दूर करने का अल्टीमेटम दिया है। साथ ही कार्रवाई करने की भी चेतावनी दी है।
बसों में मिली खामियों को दूर करने दिए निर्देश।
स्वास्थ्य विभाग ने किया केवल ब्लड प्रेशर-शुगर टेस्ट
स्वास्थ्य विभाग ड्राइवरों और हेल्परों की स्वास्थ्य जांचने आधी-अधूरी टीम लेकर पहुंची थी। टीम सुबह 11 से दोपहर 1 बजे तक ड्राइवर-हेल्परों की बीपी और शुगर टेस्ट करती रही। जब आंख-कान जांच की व्यवस्था नहीं होने पर ड्राइवर-हेल्पर लौटने लगे।
जबकि, वाहन चलाने के लिए ड्राइवर-हेल्पर के आंख-कान का दुरुस्त होना बहुत जरूरी है। आंखों का कलर बैंड होने पर चौक-चौराहों में लगे सिग्नल की लाइटों का रंग पहचान में नहीं आता।
वहीं कान कमजोर होने से ठीक से सुनाई नहीं देती। यानी कि जिस ड्राइवर का कान कमजोर है, उसे पीछे से आ रहे वाहनों का हार्न भी नहीं सुनाई देगा। आंख या कान दोनों में से कोई भी कमजोर है तो एक्सीडेंट का खतरा हर समय बना रहता है।
फिटनेस सहित बीमा, लाइसेंस जैसे दस्तावेजों का किया परीक्षण।
फिटनेस में मिली इस तरह खामियां
संयुक्त टीम ने जिन बसों की जांच की, तब पता चला कि किसी का फिटनेस प्रमाण पत्र एक्सपायर हो चुका है तो किसी के पास बीमा के दस्तावेज नहीं है। वहीं, कई बसों में पीयूसी नहीं मिले और कुछ में सीसीटीवी और फायर एक्सपायर हो चुका है। इसी तरह से दस्तावेजों में भी खामियां मिली।