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यूपी में स्मार्ट मीटर से डरे विधायक: विधानसभा चुनाव-2027 में नुकसान का डर; लोगों का दावा- सामान्य से स्मार्ट मीटर की रीडिंग तेज – Uttar Pradesh News


प्रदेश में स्मार्ट मीटर लगाए जाने का लोग भारी विरोध कर रहे हैं। लोगों का दावा है कि सामान्य मीटर की तुलना में स्मार्ट मीटर की रीडिंग तेज चलती है। कस्टमर की इस भ्रांति को दूर करने के लिए केंद्र सरकार ने सबसे पहले सरकारी दफ्तरों में स्मार्ट मीटर लगाने

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बिजली विभाग का जोर सरकारी कार्यालयों की बजाय घरेलू उपभोक्ताओं के यहां स्मार्ट मीटर लगाने पर है, लेकिन विधायक नहीं चाह रहे हैं कि उनके क्षेत्र में स्मार्ट मीटर लगे। उन्हें डर है कि विधानसभा चुनाव-2027 में नुकसान उठाना पड़ सकता है।

अब तक प्रदेश में 11.75 लाख स्मार्ट मीटर लगाए जा चुके हैं, लेकिन बिल अब भी महीने के अंत में जारी किए जा रहे हैं। सवाल है कि फिर सामान्य मीटर की बजाय स्मार्ट मीटर लगाने का फायदा क्या है? कब तक प्रदेश में स्मार्ट मीटर से प्रीपेड बिलिंग शुरू होगी? स्मार्ट मीटर लगाने वाले उपभोक्ताओं को इसका क्या फायदा मिलेगा? सामान्य मीटर और स्मार्ट मीटर के फंक्शन में किस तरह का फर्क है। पढ़िए ये रिपोर्ट…

प्रदेश में वर्तमान में 3.60 करोड़ बिजली उपभोक्ता हैं। इसमें 14 लाख किसान भी शामिल हैं। किसानों को छोड़कर सभी उपभोक्ताओं (3.46 करोड़) के यहां स्मार्ट मीटर लगाने का लक्ष्य है। प्रदेश में स्मार्ट मीटर केंद्र की रिवैम्पड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम (RDSS) के तहत लगाए जा रहे हैं। केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2026 तक शत प्रतिशत उपभोक्ताओं के यहां स्मार्ट मीटर लगाने का लक्ष्य रखा है। इस पर 27 हजार 342 करोड़ का खर्च आएगा।

प्रदेश में तीन बिंदुओं पर होना था काम

  • पहले चरण में 100% सरकारी दफ्तरों को स्मार्ट मीटर से जोड़ना था
  • दूसरे चरण में ऐसे इलाकों में पहले स्मार्ट मीटर लगाना था, जहां बिजली चोरी अधिक होती है
  • तीसरा 5 प्रतिशत सामान्य मीटर को चेक मीटर के तौर पर छोड़ना था

पहले चरण में सरकारी भवनों में लगना था स्मार्ट मीटर केंद्र सरकार ने सबसे पहले सरकारी भवनों में स्मार्ट मीटर लगाने का लक्ष्य दिया था। उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) के अध्यक्ष आशीष कुमार गोयल ने प्रदेश के 1,74,440 सरकारी विभागों में 31 मार्च 2025 तक स्मार्ट मीटर लगाने का लक्ष्य दिया था।

पर सरकारी विभागों के विरोध और ठेका कंपनियों की उदासीनता के चलते मार्च तक 17,444 (लगभग 15%) ही स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाए जा सके। लक्ष्य पूरा न होने की वजह से केंद्र सरकार से आरडीएसएस योजना के तहत राज्य को मिलने वाले अनुदान पर संकट खड़ा हो गया है। इसका सीधा नुकसान राज्य को होगा।

सरकारी भवनों में पहले स्मार्ट मीटर लगाने का उद्देश्य ये था कि इससे आम घरेलू उपभोक्ताओं को किसी तरह का संदेह नहीं रहेगा। दूसरा सरकारी कार्यालयों पर बिजली का सबसे अधिक बकाया रहता है। तीसरा सरकारी कार्यालयों में बिजली के होने वाले दुरुपयोग को भी रोका जा सकेगा।

बिजली चोरी वाले क्षेत्र में पहले लगाने थे स्मार्ट मीटर केंद्र सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक, पहले चरण में वहां स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने थे, जहां बिजली चोरी अधिक होती है। इसका मकसद ये था कि इससे बिल न जमा करने वाले उपभोक्ताओं और बिजली चोरी पर रोक लगाने में मदद मिलेगी। पर ठेका कंपनियों ने बिजली चोरी वाले इलाकों को छोड़कर पहले वहां स्मार्ट लगाने शुरू किए, जो नियमित तौर पर बिल का भुगतान कर रहे हैं और जहां बिजली चोरी सबसे कम होती है।

प्रदेश में 3.45 करोड़ उपभोक्ताओं में किसानों को छोड़कर सभी के यहां 31 मार्च 2026 तक स्मार्ट मीटर लगाने का लक्ष्य रखा गया है। पर अभी तक 11.75 लाख घरेलू उपभोक्ताओं के यहां ही स्मार्ट मीटर लगा पाए हैं। ये लक्ष्य का 4 प्रतिशत भी नहीं है।

अभी इन कंपनियों को मिला है स्मार्ट मीटर लगाने का टेंडर

5 प्रतिशत पुराने मीटर को चेक मीटर के तौर पर छोड़ना था उपभोक्ताओं में स्मार्ट मीटर के भ्रम को दूर करने के लिए केंद्र सरकार ने 5 प्रतिशत पुराने मीटर को चेक मीटर के तौर पर छोड़ने की बात कही थी। साथ में ये भी निर्देश दिया गया था कि चेक मीटर और स्मार्ट मीटर की हर महीने की रीडिंग ली जाएगी। इससे पता चल जाएगा कि स्मार्ट मीटर भी पुराने मीटर जैसे खपत के आधार पर ही चलते हैं, ना कि तेज गति से रीडिंग भागती है।

प्रदेश में 11.75 लाख स्मार्ट मीटरों की तुलना में 58 हजार के लगभग पुराने मीटर को चेक मीटर के तौर पर छोड़ना था। पर प्रदेश में 40 हजार पुराने मीटर को चेक मीटर के तौर पर छोड़ा गया है। जहां तक दोनों मीटरों की रीडिंग की बात है, तो वहां लापरवाही बरती जा रही है। उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि प्रदेश में किसी भी सर्किल में स्मार्ट मीटर और चेक मीटर की रीडिंग का मिलान नहीं कराया जा रहा है। इसी वजह से उपभोक्ताओं का संशय दूर करने में विभाग असफल हो रहा है।

प्रीपेड मीटर की बिलिंग पर 3 प्रतिशत छूट दे रहीं बिजली कंपनियां प्रदेश में स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने पर अभी 3% की छूट दी जा रही है। इसके अलावा, स्मार्ट प्रीपेड मीटर वाले उपभोक्ताओं को पोस्टपेड मीटर की तुलना में 25 पैसे प्रति यूनिट सस्ती बिजली मिलती है। स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने का कोई शुल्क नहीं है। हालांकि प्रदेश में भले ही 11.75 लाख स्मार्ट प्रीपेड मीटर लग चुके हैं, लेकिन अभी तक पोस्टपेड मीटर की तरह ही बिलिंग हो रही है।

ऐसे उपभोक्ताओं को अभी किसी तरह की सब्सिडी और छूट नहीं दी जा रही है। स्मार्ट प्रीपेड मीटर से गलत बिजली बिल से छुटकारा मिलता है। हर महीने रीडिंग कराने की आवश्यकता नहीं होती। बिजली बिल पर ब्याज या विलंब शुल्क नहीं लगता और उपभोक्ता बिजली खर्च पर खुद नियंत्रण रख सकते हैं।

अब पढ़िए स्मार्ट मीटर को लेकर क्या गलतफहमी है प्रदेश में लगाए जा रहे स्मार्ट प्रीपेड मीटर को लेकर लोगों में भ्रम है कि ये सामान्य मीटर की तुलना में तेज चलते हैं। इसका जगह-जगह विरोध भी हो रहा है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में कई उपभोक्ताओं ने शिकायत की है कि स्मार्ट मीटर लगने के बाद उनके बिजली बिलों में काफी वृद्धि हुई है। कुछ मामलों में, उपभोक्ताओं को लाखों रुपए के बिल मिले हैं, जो उनकी सामान्य खपत से मेल नहीं खाते।

ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ताओं का आरोप है कि बिना उनकी सहमति के स्मार्ट मीटर लगाए जा रहे हैं। कुछ स्थानों पर विरोध करने पर बिजली आपूर्ति काट दी गई, जिससे लोगों में आक्रोश है।​

चुनाव को लेकर स्थानीय नेता भी प्रीपेड मीटर लगाने का कर रहे विरोध स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने वाली एजेंसी के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि फील्ड में कई तरह की परेशानी आ रही है। स्थानीय जनप्रतिनिधि खासकर विधायक भी ग्रामीण क्षेत्रों में स्मार्ट मीटर लगाने का विरोध कर रहे हैं। विधायक को डर है कि स्मार्ट मीटर की नाराजगी कहीं 2027 के चुनाव में नुकसान न पहुंचा दे।

12 मई को लखनऊ के सरोजनीनगर तहसील के ग्रामसभा चंद्रावल में स्मार्ट मीटर इंस्टॉल करने गई टीम पर यहां के प्रधान के प्रतिनिधि गुरु प्रसाद यादव ने टीम को अपने गुर्गों से पिटवा दिया। यहां भी स्मार्ट मीटर के तेज चलने को लेकर कहासुनी शुरू हुई थी।

हालांकि, ऊर्जा मंत्री एके शर्मा साफ कर चुके हैं कि स्मार्ट प्रीपेड मीटर और सामान्य मीटर में कोई अंतर नहीं है। सिर्फ इसके बारे में भ्रम है, इसे दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। अभी लोगों की शिकायत रहती है कि मेरा बिल घटा दिया, गलत बिल दे दिया। स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगने के बाद लोगों को रोज परेशान नहीं होना पड़ेगा। उन्हें अपने मोबाइल पर पता चल जाएगा कि कितनी खपत हुई और कितना पैसा अभी बचा है। इस सिस्टम से विभाग और आम लोगों दोनों का जीवन सरल हो जाएगा।

कब से प्रीपेड मीटर का ट्रॉयल शुरू होगा ऊर्जा विभाग के सूत्रों के मुताबिक मई से प्रीपेड मीटर का ट्रायल शुरू होने जा रहा है। लोगों को मोबाइल की तरह पहले बिजली का बिल रिचार्ज करना पड़ेगा। इसके बाद वे खपत कर पाएंगे। प्रदेश में एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड की ओर से पूर्व में 2जी और 3जी तकनीक के 12 लाख स्मार्ट मीटर लगाए गए थे। इन मीटरों में होने वाली जम्प और तेज रीडिंग के चलते लोगों की ढेरों शिकायतें थीं।

भुगतान के बाद भी कनेक्शन दो-दो घंटे नहीं जुड़ पाते थे। इसकी वजह से लोगों को नए प्रीपेड मीटर को लेकर भी भ्रम बना हुआ है। दूसरा मौजूदा समय में लगाए जा रहे स्मार्ट प्रीपेड मीटर में चाइनीज चिप लगे हैं, इसको लेकर भी लोग आशंकित हैं।

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