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नई दिल्ली27 मिनट पहले
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मामला 2005 का है, जब ITBP जवान को कैश लूट मामले में नौकरी से निकाल दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल पुराने मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि जब संरक्षक ही लूटेरा बन जाए जो उसे सजा देना जरूरी हो जाता है। इसी के साथ कोर्ट ने भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसने कैश लूट मामले में एक कांस्टेबल को बर्खास्त कर दिया था।
मामला साल 2005 का है, कांस्टेबल को जवानों की सैलरी के लिए लाए गए कैश बॉक्स की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी। बाद में कांस्टेबल ने बॉक्स का ताला तोड़कर कैश निकाल लिया था। ITBP ने उसे नौकरी से निकाल दिया था। बाद में जवान उत्तराखंड हाईकोर्ट पहुंचा, जहां कोर्ट ने ITBP से अपने फैसले पर पुर्नविचार करने को कहा था। फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने शुक्रवार को उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए कहा कहा कि, इस तरह के अपराधों में दोषी पाए गए कांस्टेबल को उचित दंड देना अनुशासनात्मक प्राधिकारी का कर्तव्य है।
कोर्ट ने कहा- जब बात सुरक्षाबलों की हो, तो जिम्मेदारी बढ़ जाती है सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि, जहां जिम्मेदारी की बात हो तो अर्धसैनिक बलों में इसकी भावना और अधिक होनी चाहिए। जहां अनुशासन, नैतिकता, निष्ठा, सेवा के प्रति समर्पण और विश्वसनीयता नौकरी के लिए आवश्यक हैं।
कोर्ट ने कहा कि कांस्टेबल जागेश्वर सिंह एक अनुशासित अर्धसैनिक बल का सदस्य था, जो एक संवेदनशील सीमा क्षेत्र में तैनात था। उसे कैश बॉक्स की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी। हालांकि, उसने अपने विश्वास और भरोसे को दरकिनार कर कैश बॉक्स को तोड़ दिया।
अब जानिए पूरा मामला क्या है कांस्टेबल जागेश्वर सिंह को 30 नवंबर, 1990 को ITBP में भर्ती किया गया था और वह 4-5 जुलाई, 2005 की मध्यरात्रि को कोटे में संतरी के रूप में ड्यूटी कर रहा था, जहां जवानों को सैलरी के रूप में दिए जाने वाले लाखों रुपये से भरे कैश बॉक्स रखे हुए थे।
सिंह ने कथित तौर पर ताला तोड़ दिया और नकदी ले ली, इसके बाद कैश बॉक्स को कोटे से लगभग 200 गज की दूरी पर छिपा दिया और पोस्ट से भाग गया। जब घटना कंपनी कमांडर को पता चली तो उन्होंने तुरंत आस-पास के इलाके के साथ-साथ उत्तरकाशी की ओर जाने वाले वाहन की भी तलाशी ली, लेकिन आरोपी भाग निकला।
कंपनी कमांडर ने तब मामले की सूचना बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर को दी और बाद में 6 जुलाई, 2005 को कांस्टेबल के खिलाफ FIR दर्ज की गई। FIR के बाद कोर्ट ऑफ इंक्वायरी हुई, जिसमें जवान दोषी पाया गया।
गिरफ्तार होने पर जवान ने अपराध कबूल कर लिया जिसके बाद उसे 14 नवंबर, 2005 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। बाद में जवान ने हाईकोर्ट में बर्खास्तगी के फैसले को चुनौती दी और दावा किया कि उसका बयान दबाव में दिया गया था।
हालांकि, हाईकोर्ट उसके इस तर्क से सहमत नहीं था कि उसने दबाव में बयान दिया था, लेकिन उसने ITBP से सेवा से बर्खास्तगी की सजा के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा था।
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