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IAS कटारिया, किरण और डॉक्टर शिप्रा को नोटिस: हाईकोर्ट ने अफसरों से मांगा जवाब, डॉक्टर की बर्खास्तगी रद्द होने के बाद भी नहीं मिली नियुक्ति – Bilaspur (Chhattisgarh) News



अनवर ढेबर का इलाज करने वाले डाक्टर की याचिका पर हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने चिकित्सा शिक्षा विभाग के सचिव आईएएस अमित कटारिया, चिकित्सा शिक्षा कमिश्नर किरण कौशल और डीकेएस सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल रायपुर की इंचार्ज डॉक्टर शिप्रा शर्मा को अवमानना नोटिस जारी किया है। रायपुर के पूर्व महापौर एजाज ढेबर के भाई

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बता दें कि ढेबर को जिला अस्पताल से एम्स रेफर करने के मामले में डॉक्टर शुक्ला को छत्तीसगढ़ शासन ने सेवा से बर्खास्त कर दिया था, लेकिन उनके द्वारा हाईकोर्ट में लगाई याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने शासन के आदेश को निरस्त कर दिया था।

डॉक्टर शुक्ला की सेवा समाप्त करने का आदेश हाईकोर्ट से निरस्त होने के 3 महीने बाद भी जब उन्हें न तो सैलरी मिली और न ही ज्वानिंग तो उन्होंने कोर्ट में अवमानना का केस लगाया। हाईकोर्ट के जस्टिस अरविंद वर्मा ने सुनवाई के बाद तीनों अधिकारियों को अवमानना नोटिस जारी कर पूछा है कि क्यों न उनके विरूद्ध अवमानना का प्रकरण चलाया जाए।

ये था पूरा मामला

दरअसल, शराब घोटाले के आरोपी अनवर ढेबर को इलाज कराने के लिए रायपुर सेंट्रल जेल से जिला अस्पताल लाया गया था। जिला अस्पताल में लोअर इंडोस्कोपी मशीन के खराब होने के कारण डॉ प्रवेश शुक्ला ने उसे एम्स रेफर कर दिया, जिस पर सेवा में कमी और अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए राज्य शासन ने उनकी सेवा समाप्त कर दी। इस मामले में गोलबाजार थाने में उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई गई थी।

शासन के आदेश को चुनौती

सहायक प्राध्यापक गैस्ट्रो सर्जरी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ प्रवेश शुक्ला ने एडवोकेट संदीप दुबे के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अस्पताल अधीक्षक और एकेडमी इंजार्च के 8 अगस्त 2024 के बर्खास्तगी आदेश को चुनौती दी। इसमें बताया गया कि याचिकाकर्ता पर स्वास्थ्य विभाग के अफसरों के मनमानेपूर्ण आदेश से उनका करियर चौपट हो जाएगा।

याचिकाकर्ता डॉक्टर ने अपनी डिग्री और अनुभव के हवाले से बताया कि वह गैस्ट्रोएंटरोलॉजी सर्जन के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध डॉक्टर है। शुक्ला पर आरोप है कि, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी सर्जन होने के नाते ओपीडी में इलाज करते समय उन्होंने अनवर ढेबर को एम्स में रेफर कर दिया, क्योंकि जीआई एंडोस्कोपी (कोलोनोस्कोपी) उपकरण विभाग में उपलब्ध नहीं था। यदि कोलोनोस्कोपी विभाग में उपलब्ध नहीं है, तो वह इसे अन्य सरकारी अस्पताल से करवा सकते थे, जो पूर्णतः अनुशासनहीनता है।

याचिकाकर्ता डॉक्टर ने बताया कि, विवाद लोअर जीआई एंडोस्कोपी (कोलोनोस्कोपी) की उपलब्धता से संबंधित है। कोलोनोस्कोपी आमतौर पर गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट (जो चिकित्सा पर सुपर स्पेशलिस्ट की डिग्री रखता है) के द्वारा की जाती है। उसके पास गैस्ट्रोएंटरोलॉजी सर्जन की सुपर स्पेशलिस्ट डिग्री है।

मेडिसिन की डिग्री उसके पास नहीं है, इसलिए वह कोलोनोस्कोपी उपकरण चलाने के लिए इस क्षेत्र के एक्सपर्ट नहीं है।

याचिका के अनुसार उसने जांच समिति गठित करने और मामले की जांच करने के लिए सक्षम प्राधिकारी के समक्ष मांग भी की। लेकिन अब तक अधिकारियों ने जांच समिति गठित नहीं की और न ही मामले की जांच की।

हाईकोर्ट ने शासन का आदेश निरस्त किया

उल्लेखनीय है कि एडवोकेट संदीप दुबे के तर्कों को सुनने के बाद जस्टिस प्रसाद ने अपने फैसले में लिखा है कि, राज्य शासन के आदेश को देखकर लगता है कि यह एक कलंकपूर्ण आदेश है, जिसमें छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 के उल्लंघन किया गया है।

लिहाजा, याचिकाकर्ता को विभागीय जांच में शामिल कर उसकी सुनवाई की जानी आवश्यक है, जो वर्तमान मामले में नहीं की गई है। हाईकोर्ट ने आदेश को विवादित मानते हुए निरस्त करने का आदेश दिया है।



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