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गुरुड़ पुराण में सभी कार्यों को करने के विशेष रीति और नियम बनाए गए हैं. इन रीति और नियम के तहत ही शव से संबंधित कार्य किए जाते हैं. पुराण में ऐसे 5 लोगों के बारे में बताया गया है, जिनका कहीं भी शव नहीं जलाया जा…और पढ़ें
इन 5 लोगों की कहीं भी नहीं जलाया जाता शव
हाइलाइट्स
- 11 साल से कम उम्र के बच्चे का शव नहीं जलाया जाता.
- साधु-संत का शव जलाने की बजाय थल या जल समाधी दी जाती है.
- प्रेगनेंट महिला का शव जलाने की प्रथा नहीं है.
हिंदू धर्म में पार्थिव शरीर के दाह संस्कार के लिए कुछ विशेष नियम बनाए गए हैं और ये सभी नियम गरुड़ पुराण में बताए गए हैं. गरुड़ पुराण के अनुसार, दाह संस्कार के लिए नियमों के तहत किए गए कार्य से ही आत्मा को शांति मिलती है और अगले जन्म के लिए प्रवेश द्वार खुलते हैं. साथ ही ऐसे 5 लोगों के शव के बारे में भी बताया गया है, जिनका दाह संस्कार नहीं किया जाता. ऐसे लोगों के शव के लिए आमजन से अलग कुछ विशेष नियम बनाए गए हैं. गरुड़ पुराण में अंतिम संस्कार का उतना ही महत्व बताया गया है, जितना की 16 संस्कारों का है. आइए शास्त्रों के अनुसार जानते हैं कि किन 5 लोगों के शवों को नहीं जलाया जा सकता…
11 साल के कम उम्र का बच्चा
गरुड़ पुराण के अनुसार, अगर बच्चा गर्भ में पल रहा है या फिर 11 साल से कम उम्र के बच्चे की अगर मृत्यु हो जाती है तो उसके शव को जलाया नहीं जा सकता, उनको थल समाधी दी जाती है. शास्त्रों में 11 वर्ष के अंदर बच्चे का जनेऊ संस्कार करने का विधान है लेकिन अगर जनेऊ संस्कार हो जाता है तब शव को जलाया जा सकता है. वहीं अगर लड़की के अगर मासिक धर्म शुरू नहीं हुए हैं तो उसका दाह संस्कार नहीं किया जा सकता है. ऐसे बच्चों को थल समाधी दी जाती है. मान्यता है कि छोटी उम्र में मृत्यु होने पर आत्मा को शरीर से ज्यादा लगाव नहीं होता है इसलिए बच्चों के शव को जलाने के बजाय नदी में विसर्जित या किसी जगह दफना दिया जाता है.
साधु-संत का शव
गरुड़ पुराण के अनुसार, साधु-संत के शव का दाह संस्कार नहीं किया जाता है. वे पहले ही गृहस्थ आश्रम को छोड़ चुके होते हैं और सांसारिक सुखों का त्याग कर चुके होते हैं. साधु-संत के शव को भी थल या जल समाधि दी जाती है. साधु-संत कठोर तपस्या से अपनी इंद्रियों पर काबू पा लेता है, जिसकी वजह से उसको अपने शरीर से ज्यादा मोह नहीं रहता है इसलिए साधु-संतों को जल या थल समाधि दी जाती है.
सांप के काटने मृत व्यक्ति
गरुड़ पुराण के अनुसार, जिस व्यक्ति की सांप काटने या फिर किसी अन्य जहर से मृत्यु हुई हो तो उनका कहीं भी शव नहीं जलाया जा सकता है. मान्यता है कि ऐसे व्यक्ति के शरीर में 21 दिन तक सूक्ष्म प्राण रहते हैं अर्थात वह पूरी तरह से मृत्यु को प्राप्त नहीं हुआ होता है. इसलिए ऐसे व्यक्ति को थल समाधी देने की परंपरा है.
प्रेगनेंट महिला का नहीं जलाया जाता शव
गरुड़ पुराण के अनुसार, प्रेगनेंट महिला के शव को जलाने की प्रथा नहीं है इसलिए उनको जल या थल समाधी दी जाती है. इसके पीछे का कारण यह बताया जाता है कि प्रेगनेंट महिला के शव को जब जलाया जाता है तब उनका पेट ज्यादा फूल जाता है और आग की वजह से फट भी जाता है और अंदर मौजूद बच्चा बाहर आ जाता है, जो देखने में बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता. इसलिए प्रेगनेंट महिला के शव को जल या थल समाधी दी जाती है.
संक्रमित रोग से मृत व्यक्ति
गरुड़ पुराण के अनुसार, जहर के अलावा संक्रमति रोग से पीड़ित व्यक्ति की अगर मृत्यु हो जाए तो उनके भी शव को जलाना नहीं जाता बल्कि थल समाधी दी जाती है. चर्म रोग, कुष्ट रोग आदि से पीड़ित मरीज के अगर शव को जलाते हैं तो हवा में बैक्टीरिया फैलने का खतरा बना रहता है और अन्य लोग उस हवा की वजह से संक्रमित हो सकते हैं इसलिए क्रमति रोग से पीड़ित व्यक्तियों के शव को थल समाधी देने की प्रथा है.