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क्या बाबरी मस्जिद जैसा होगा औरंगजेब की कब्र का हाल: खुल्दाबाद के लोग बोले- सरकार हमारी रोजी-रोटी का सोचे, कब्र टूटी तो खाएंगे क्या


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11 मार्च, 2025 मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस: BJP और महाराष्ट्र के लोग औरंगजेब की कब्र हटाना चाहते हैं। ये कब्र कांग्रेस सरकारों के समय संरक्षित हुई और अब ASI के अधीन हैं। इसे हटाने के लिए कानून के मुताबिक कार्रवाई की जाएगी।

13 मार्च, 2025 मंत्री नितेश राणे: औरंगजेब की कब्र को लेकर सरकार की भी वही सोच है। सरकार इसे हटाने के लिए तैयार है। हिंदू समाज को भरोसा दिलाया गया है कि कब्र हटाने का कार्यक्रम होकर रहेगा और सरकार के पास इसके लिए 5 साल हैं।

17 मार्च, 2025 BJP विधायक टी राजा: महाराष्ट्र के हिंदू चाहते हैं कि औरंगजेब की कब्र राज्य से खत्म हो। उनका संकल्प भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना और कब्र हटाना है। पूरे देश के हिंदू पूछ रहे हैं कि ये कब्र अब भी क्यों है, क्योंकि औरंगजेब ने मंदिरों को तबाह किया और अत्याचार किए। ये कब्र महाराष्ट्र में एक जहरीली तलवार की तरह है।

छत्रपति संभाजीनगर, जिसे कभी औरंगाबाद के नाम से जाना जाता था, वो इन दिनों सियासत का गढ़ बना हुआ है। यहां मुगल बादशाह रहे औरंगजेब की कब्र को लेकर बवाल मचा हुआ है। 17 मार्च को विश्व हिन्दू परिषद यानी VHP ने इसे लेकर पूरे महाराष्ट्र में प्रदर्शन किया। औरंगजेब के पुतले फूंके और बाबरी जैसी ‘कारसेवा’ करने का ऐलान कर दिया।

उधर नागपुर में 17 मार्च की शाम एक प्रदर्शन हुआ। जिसके बाद दो समुदायों के बीच हिंसक झड़प हो गई। प्रदर्शनकारियों ने पत्थरबाजी और आगजनी में कई दर्जन गाड़ियां जला दीं। घटना में एक DSP समेत कई लोग घायल हुए।

आखिर औरंगजेब की कब्र राजनीतिक अखाड़े का केंद्र क्यों बनी हुई है? दैनिक भास्कर की टीम इसका जवाब तलाशने के लिए छत्रपति संभाजीनगर में ग्राउंड जीरो पर पहुंची। खुल्दाबाद के लोगों से मिलकर एक ही बात समझ आई कि अगर कब्र टूटी तो यहां के लोगों से रोजी-रोटी छिन जाएगी।

किले जैसी कड़ी सुरक्षा के बीच औरंगजेब की कब्र संभाजीनगर के बाहरी इलाके में मौजूद खुल्दाबाद की संकरी गलियों से होते हुए हम औरंगजेब की कब्र की जगह पहुंचे। आजकल यहां पहले जैसी चहल-पहल नहीं दिखती। शांत रहने वाली ये जगह विवादों की वजह से कड़े सुरक्षा घेरे में है।

यहां बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मी तैनात हैं। वो हर आने-जाने वाले पर कड़ी नजर रख रहे हैं। आई कार्ड दिखाने पर ही अंदर जाने की परमिशन है। इसके बाद विजिटर रजिस्टर में नाम दर्ज करना होता है। हमें औरंगजेब की कब्र तक जाने की परमिशन तो मिल गई, लेकिन कैमरा बाहर ही रखवा लिया गया।

मजार के एंट्री गेट पर एक बोर्ड लगा था। उस पर साफ चेतावनी लिखी थी कि स्मारक संरक्षित है। इसे नुकसान पहुंचाने वाले को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण अधिनियम के तहत 3 महीने की जेल, 5000 रुपए का जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है।

अंदर एक छोटा सा मिट्टी का चबूतरा था, जिस पर सफेद चादर बिछी हुई है। कब्र पर एक तुलसी का पौधा लगा है। पास में एक पत्थर रखा है, जिस पर औरंगजेब का नाम खुदा है।

कब्रगाह के रखरखाव पर हर साल 20 हजार का खर्च यहां हमारी मुलाकात कब्र के खादिम परवेज अहमद हाजी कबीर अहमद से हुई। उनका परिवार 314 सालों से कब्र की देखरेख कर रहा है। परिवार की रोजी-रोटी कब्र देखने आने वाले टूरिस्ट्स पर निर्भर है, जो बाहर लगी दुकानों से अंगूठियां खरीदते हैं। कब्र की देखरेख का सालाना खर्च लगभग 20,000 रुपए है। इसमें बिजली बिल और चादर की कीमत शामिल है। इसके लिए सरकार से कोई मदद नहीं मिलती।

परवेज बताते हैं, ‘औरंगजेब ने वसीयत में सादगी से दफन होने की इच्छा जताई थी, इसीलिए कब्र कच्ची मिट्टी की है। उस पर सब्जे यानी तुलसी का पौधा लगा है। औरंगजेब टोपी सिलकर और कुरान लिखकर जीवन यापन करते थे। इसी की कमाई से अपनी कब्र बनवाई थी। 1921 में हैदराबाद के निजाम ने यहां संगमरमर की जाली लगवाई थी।‘ परवेज मौजूदा माहौल से दुखी हैं।

दुकानदार बोले- ‘टूरिस्ट नहीं आएंगे तो पेट कैसे पलेगा?’ मजार से बाहर निकलते हुए हम अंगूठियों की उन दुकानों पर भी गए, जिसे लोग निशानी के तौर पर यहां से ले जाते हैं। यहीं हमारी मुलाकात दुकानदार मोहम्मद सादिक (शेख सादिक) से हुई।

सादिक कहते हैं, ‘औरंगजेब को लेकर चल रहा विवाद राजनीति से प्रेरित है। AC कमरों में बैठे नेता बयानबाजी करते हैं और आम लोग परेशान होते हैं। यहां के 5 से 10 हजार युवा रोज टूरिज्म के जरिए कमाते-खाते हैं।‘

नेताओं की बयानबाजी के कारण खुल्दाबाद और दौलताबाद फोर्ट में टूरिस्ट आना बंद हो गए हैं। दहशत के माहौल के चलते लोग यहां आने से डर रहे हैं।

‘यहां कोई बड़ा कारोबार नहीं है। रोज कमाने-खाने वाले लोग हैं। 200-500 बच्चे रोजी-रोटी के लिए खुल्दाबाद, दौलताबाद किले और औरंगाबाद जाते हैं। यहां रोजगार के नाम पर सिर्फ टपरियां, हाथ गाड़ियां और चाय की दुकानें हैं। यहां सब टूरिस्ट्स पर निर्भर हैं। जब वही नहीं आएंगे, तो हमारे पेट कैसे पलेंगे।‘

सादिक आगे कहते हैं, ‘खुल्दाबाद में हिंदू और मुस्लिम मिल-जुलकर सभी त्योहार मनाते आए हैं। औरंगजेब के मुद्दे पर नेताओं की बयानबाजी से इस भाईचारे को चोट पहुंची है। 300 साल पुरानी बातों का आज कोई मतलब नहीं है। पुरानी तस्वीरों से माहौल बिगाड़ा जा रहा है। हमारी यही अपील है कि भाईचारा बनाए रखें। औरंगजेब को बाईस ख्वाजा की दरगाह में सुकून मिलता था, इसलिए उनकी वसीयत के मुताबिक, उन्हें यहीं दफनाया गया।‘

खादिम बोले- औरंगजेब की कब्र की हिफाजत करना सरकार का फर्ज इसके बाद हमारी मुलाकात कब्र की देखरेख करने वाले फिरोज अहमद कबीर अहमद से हुई। वे यहां खादिम चोबदार हैं। वे कहते हैं, ‘मेरी यहां पर छठी पीढ़ी है। जब से औरंगजेब रहमतुल्ला का इंतकाल हुआ, उस दिन से हमारा परिवार यहां खिदमत कर रहा है। खुल्दाबाद में डर का कोई माहौल नहीं है। कब्र हटाने की बातें सोशल मीडिया और न्यूज पर चल रही हैं।

‘हमारी सरकार से गुजारिश है कि वो इसकी हिफाजत करें। ये आर्कियोलॉजिकल सर्वे के तहत आती है। औरंगजेब ने हिंदुस्तान पर 50 साल हुकूमत की। उनकी बनवाई हुई बहुत सी ऐतिहासिक इमारतें हैं, जैसे- बीबी का मकबरा। जैसे इनकी हिफाजत की जा रही है, वैसे ही इसकी हिफाजत करना भी सरकार का फर्ज है।‘

खुल्दाबाद के हिंदू बोले- सियासत के लिए भड़काना सही नहीं मजार के बगल में रहने वाले राजाराम पवार इस विवाद पर कहते हैं, ‘खुल्दाबाद में सभी धर्म-जाति के लोग (दलित, मुस्लिम, अन्य) मिल-जुलकर रहते आए हैं। यहां जातिवाद जैसी कोई चीज नहीं है।‘

‘औरंगजेब की कब्र उखाड़ने की बात से यहां के लोग गुस्सा हैं। इससे आपसी भाईचारा टूटने और हिंसा बढ़ने का खतरा है। चुनी हुई सरकार और नेताओं का काम लोगों को बांटना नहीं, बल्कि एक परिवार की तरह सबको साथ लेकर चलना है।‘

राजाराम आगे कहते हैं, ‘राजा या पंच-प्रधान वो होता है, जो पूरे देश को परिवार समझे, न कि जाति-धर्म के नाम पर भेदभाव करे। आने वाले चुनावों में वोटों के लिए इस खाई को और गहरा किया जा रहा है, इसमें आम आदमी ही मरेगा, नेता नहीं।‘

सियासी फायदे के लिए भाईचारा बिगाड़ रहे कुछ लोग खुल्दाबाद में औरंगज़ेब की कब्र के पास में ही रहने वाले मोहम्मद सूफियान पूरे विवाद को राजनीति से प्रेरित मानते हैं। वे कहते हैं, ‘ये कब्र 350 सालों से यहां बिना किसी विवाद के है। खुल्दाबाद हमेशा से एक शांत जगह रही है। यहां इस कब्र को लेकर कभी कोई समस्या नहीं हुई। यहां हिंदू-मुस्लिम सब मिल-जुलकर रहते आए हैं।‘

सूफियान का मानना है कि ये विवाद सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए खड़ा किया गया है। वे कहते हैं, ‘राजनेता ऐसे मुद्दे लाकर बेरोजगारी, शिक्षा और विकास जैसे जरूरी मुद्दों से ध्यान हटाते हैं। वे धार्मिक भावनाएं भड़काकर वोट हासिल करना चाहते हैं।‘

टूरिज्म खत्म हुआ तो सभी की रोजी-रोटी छिनेगी मोहम्मद शेख इकबाल खुल्दाबाद में दुकान चलाते हैं। वे औरंगजेब की कब्र के विवाद को अर्थहीन बताते हैं। वे कहते हैं, ‘ये कब्र यहां सदियों से है। इसे हटाने या न हटाने से कोई फर्क नहीं पड़ता।‘ इकबाल के मुताबिक, इस विवाद ने टूरिज्म को जरूर नुकसान पहुंचाया है। इसका असर लोगों की रोजी-रोटी पर पड़ा है।

इकबाल को भरोसा है कि खुल्दाबाद के लोग समझदार हैं और इस विवाद में नहीं फंसेंगे। वे कहते हैं, ‘महाराष्ट्र विकास के रास्ते पर आगे बढ़ता रहेगा।‘

कब्र हटाने के लिए VHP का तीन-लेवल प्लान इसके बाद हम उन लोगों से मिले, जिन्होंने औरंगजेब की कब्र को हटाने की मुहिम शुरू की है। हमने विश्व हिन्दू परिषद के सहमंत्री श्रीराज नायर से बात की। नायर ने 314 साल बाद औरंगजेब की कब्र को हटाने के सवाल पर कहा- विहिप और बजरंग दल आज पूरे महाराष्ट्र में आंदोलन कर रहे हैं।

इसके तहत हमारे कार्यकर्ता सभी तहसीलदारों और कलेक्टरों से मिलकर उन्हें ज्ञापन सौंपेंगे। हमारी मुख्य मांग औरंगजेब की कब्र हटाने की है।

नायर आगे कहते हैं, ‘हमारी ये मांग इसलिए है क्योंकि औरंगजेब एक क्रूर शासक था। उसने लाखों हिंदुओं को यातनाएं दीं और उनकी हत्या की। उसने छत्रपति संभाजी महाराज को भी क्रूरता से मारा। उसका यहां की संस्कृति से कोई संबंध नहीं। यहां तक कि भारतीय मुसलमानों का भी उनसे कोई लेना-देना नहीं है।’

आखिर में चेतावनी देते हुए नायर कहते हैं, ‘हमारी कोशिश रहेगी कि सरकार खुद इस मामले पर संज्ञान ले। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) भी इस कब्र को हटाने की दिशा में कार्रवाई करे। हमारी मांग है कि ये कब्र तुरंत हटाई जाए। वरना हम अपने तीन-चरणीय आंदोलन को आगे बढ़ाएंगे।

‘VHP के प्रदर्शन को देखते हुए प्रशासन ने औरंगजेब की कब्र के बाहर सुरक्षा बढ़ा दी है। पुलिस कमिश्नर प्रवीण पवार ने बाहरी लोगों को शहर में आकर माहौल खराब न करने की चेतावनी दी है। एसपी डॉ. विनयकुमार राठौड़ ने अफवाहों से बचने और सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट न करने की अपील की है।

कलेक्टर दिलीप स्वामी ने बताया कि कब्र की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। कब्र के आसपास अब सशस्त्र जवान, दंगा नियंत्रण दस्ता और महिला पुलिसकर्मी तैनात हैं।

अबू आजमी के बयान से शुरू हुआ था विवाद इस विवाद की शुरुआत 3 मार्च को समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी के एक बयान से हुई। आजमी ने कहा था कि इतिहास में औरंगजेब को गलत तरीके से पेश किया गया है। उन्होंने दावा किया कि औरंगजेब ने कई मंदिर बनवाए थे और वे उसे क्रूर शासक नहीं मानते। आजमी ने ये भी कहा कि छत्रपति संभाजी महाराज और औरंगजेब के बीच लड़ाई धार्मिक नहीं, बल्कि सत्ता और संपत्ति के लिए थी।

उन्होंने कहा कि औरंगजेब ने 52 साल शासन किया। अगर वो सच में हिंदुओं को मुसलमान बनाना चाहता, तो बड़ी संख्या में धर्मांतरण हुआ होता। हालांकि विवाद बढ़ने के बाद आजमी ने शब्दों को तोड़-मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अगर उनके बयान से किसी को ठेस पहुंची है, तो वे अपने शब्द वापस लेते हैं।

संजय राउत बोले- ये मराठाओं के शौर्य का स्मारक शिवसेना उद्धव गुट के नेता संजय राउत ने कब्र विवाद को लेकर BJP नेताओं पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि औरंगजेब की कब्र मराठाओं के शौर्य का एक स्मारक है। ये आने वाली पीढ़ी को बताएगा कि किस तरह शिवाजी महाराज और मराठा सैनिक आक्रांताओं से लड़ते रहे।

वहीं, कांग्रेस विधायक विजय वडेट्टीवार ने कहा-

वे नहीं चाहते कि महाराष्ट्र के लोग शांति से रहें। मैं उनसे कहना चाहूंगा कि औरंगजेब 27 साल तक यहां रहे और वे राज्य के लिए कुछ नहीं कर पाए। अब उनकी कब्र हटाने के बाद क्या मिलेगा।

शिवाजी महाराज के मंदिर पर 270 रुपए, औरंगजेब की कब्र पर लाखों का खर्च महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज के मंदिर और मुगल बादशाह औरंगजेब के मकबरे के रखरखाव पर होने वाले खर्च को लेकर भी एक विवाद चल रहा है। हिंदू जनजागृति समिति ने एक RTI के हवाले से दावा किया है कि राज्य सरकार शिवाजी महाराज के मंदिर के लिए हर साल सिर्फ 270 रुपए खर्च करती है, जबकि औरंगजेब के मकबरे पर लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं।

समिति के प्रवक्ता सुनील घनवट ने बताया कि सिंधुदुर्ग के मालवन में स्थित शिवाजी महाराज के मंदिर को 1970 के गजट के मुताबिक, हर साल महज 270 रुपए की ग्रांट मिलती है। उन्होंने इसे बढ़ाने की मांग की है। ये मंदिर शिवाजी महाराज के बेटे राजाराम महाराज ने बनवाया था। ये महाराष्ट्र सरकार के अधीन है।

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