यूपी का हाथरस पूरे देश को अपने रंग में रंगता है। होली पर देशभर में जितने कलर की सप्लाई होती है, उसका 80% माल हाथरस में ही तैयार होता है। यहां कलर बनाने के करीब 25 बड़े कारखाने हैं। तोता, मुर्गा, जोकर जैसे बड़े ब्रांड हाथरस के हैं। यहां कलर बनाने का इति
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एक अनुमान के मुताबिक, इस बार पूरे देश में एक लाख टन से ज्यादा माल हाथरस से सप्लाई हुआ है। दिल्ली के कई बड़े व्यापारी यहां से माल लेकर गए हैं, जिनकी सप्लाई भारत के अलावा दूसरे देशों में भी है। इस बार आग बुझाने वाले सिलेंडरों की भी खूब बिक्री हुई है। दरअसल, इन सिलेंडरों से तेजी से हवा के रूप में गुलाल निकलता है।
कलर कैसे बनता है? हाथरस में कितना माल बनता है? कहां-कहां सप्लाई होता है? ये सब जानने के लिए दैनिक भास्कर ग्राउंड जीरो पर पहुंचा। पढ़िए ये रिपोर्ट…
हाथरस की एक फैक्ट्री में हरा गुलाल तैयार करते कारीगर।
मथुरा सिर्फ 40 KM दूर, 1950 में पहली कलर फैक्ट्री लगी हाथरस में कलर बनाने की करीब 25 फैक्ट्रियां हैं। इसके अलावा हाथरस के कुछ लोगों ने अब गुजरात और छत्तीसगढ़ सहित दूसरे स्टेट में फैक्ट्रियां खोल ली हैं। जानकार बताते हैं कि प्राचीन समय से मथुरा सहित ब्रज क्षेत्र में बड़े पैमाने पर होली का प्रचलन रहा है। उस वक्त फूलों की होली खेली जाती थी।
हाथरस की फैक्ट्री में मशीन से रंग तैयार करती महिला। हाथरस में कलर बनाने का काम कुटीर उद्योग का रूप ले चुका है।
मथुरा से 40 किलोमीटर दूर हाथरस में साल- 1950 के आसपास कलर फैक्ट्रियां लगनी शुरू हुईं। अकेले मुर्गा ब्रांड की यहां 8-10 फैक्ट्रियां हैं।
हाथरस में किला गेट, बीएच ऑयल मिल रोड, नाई का नंगला, लाला का नंगला सहित कई इलाकों में बड़े पैमाने पर कलर बनाने का काम होता है। यहां सबसे ज्यादा गुलाल बनाया जाता है, जबकि फैक्ट्रियों में पक्के रंग भी बनाए जाते हैं। हाथरस में कलर बनाने का काम कुटीर उद्योग के रूप में भी विकसित हो चुका है। यहां करीब 10 हजार लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर इस कारोबार से जुड़े हैं।
मशीन से कलर तैयार किया जाता है। हाथरस में मुर्गा ब्रांड की 8-10 फैक्ट्रियां हैं।
बटन दबाते ही सिलेंडर से निकलेंगे 3 रंग हाथरस की तोता रंग कंपनी ने गुलाल और रंग वाले सिलेंडर भी बनाए हैं। कंपनी के CEO रामबिहारी अग्रवाल बताते हैं- आग बुझाने वाले छोटे सिलेंडरों के अंदर कलर के 3 खांचे बने हैं। इनके अंदर एक बार में करीब 5 किलो गुलाल भरा जा सकता है।
सिलेंडर के बाहर 3 बटन लगे हैं। एक साथ तीनों बटन दबाने पर तीनों खांचों से 3 तरह का रंग सिलेंडर से बाहर निकलेंगे। मथुरा, वृंदावन के मंदिरों में इसी तरह के सिलेंडरों से होली खेली जाती है।
रंग वाले सिलेंडर भी तैयार किए गए हैं। बटन दबाने पर इनमें से रंग निकलने लगता है।
गुजरात से आते हैं कलर, स्टार्च मिलाकर बनता है गुलाल हाथरस के मोहल्ला नाई का नगला में तोता ब्रांड की फैक्ट्री है। यहां पर कलर बनाने का काम अब लगभग पूरा हो चुका था। सिर्फ माल लोड करके भेजने का काम आखिरी दौर में चल रहा है। फैक्ट्री के मालिक कल्प गर्ग बताते हैं- हमारी फैक्ट्री 1950 में बनी थी। हम चौथी पीढ़ी हैं, जो इस कारोबार को संभाल रहे हैं।
कल्प बताते हैं- कलर्स बनाने में दो चीज प्रमुख तौर पर इस्तेमाल की जाती हैं, हर्बल कलर और स्टार्च। रॉ कलर हम अहमदाबाद, सूरत समेत गुजरात के कई शहरों से मंगवाते हैं। जबकि स्टार्च लोकल स्तर पर उपलब्ध हो जाता है। कलर बनाने की प्रक्रिया होली से करीब 3 महीने पहले शुरू हो जाती है।
जोकर ब्रांड ने डेढ़ हजार टन कलर बेचा हाथरस के किला ईंट इलाके में जोकर ब्रांड की फैक्ट्री है। ये फैक्ट्री 1970 से स्थापित है। यहां पर भी हमें कलर्स की पैकेजिंग और सप्लाई का काम चलता हुआ मिला। इसके ओनर नमन मित्तल बताते हैं- दिवाली से 15-20 दिन पहले थोक कारोबारी अपना ऑर्डर लिखवाना शुरू कर देते हैं।
दिवाली बीतने के बाद जैसे ही लेबर वापस काम पर आती है, हम रंग बनाने का काम शुरू कर देते हैं। हमारे यहां से कलर की सप्लाई पूरे देश में होती है। होली से करीब 25 दिन पहले उत्पादन का काम पूरा कर लिया जाता है।
संभल में बने 15 तरह के गुलाल की 8 राज्यों में सप्लाई होली के कलर बनाने के मामले में जिला संभल भी पीछे नहीं है। यहां बने कलर की सप्लाई देश के 8 राज्यों तक होती है। बृजेश गुप्ता की फैक्ट्री में फिलहाल 15 तरह का गुलाल बन रहा है। बृजेश गुप्ता के बेटे हर्ष गुप्ता बताते हैं- होली पर हम करीब 100 टन गुलाल बनाते हैं। इस बार भगवा रंग के गुलाल की डिमांड ज्यादा आई है।
काफी पहले से रंग और गुलाल बनाकर उसे सुखाने का काम शुरू हो जाता है।
हर्ष गुप्ता ने हमें गुलाल बनाने की पूरी प्रक्रिया समझाई। उन्होंने बताया- मक्के का आटा और अरारोट को मिलाकर बारीक पाउडर तैयार किया जाता है। इसके बाद उस पाउडर में हर्बल कलर्स मशीन के जरिए मिलाए जाते हैं। इन कलर को करीब 8 दिन तक धूप में सुखाया जाता है। फिर गुलाल की पैकिंग 80 ग्राम के पैकेट से लेकर 25 किलो के पैक तक की जाती है। खुशबू के लिए गुलाल में रोज, लेवेंडर, मोगरा और जैस्मिन जैसे एसेंस डाले जाते हैं।
क्या होता है स्टार्च? गुलाल बनाने में जो चीज सबसे ज्यादा इस्तेमाल होती है, वो है स्टार्च। स्टार्च एक सफेद, दानेदार, कार्बनिक रसायन है, जो कई तरह के हरे पौधे से निकलता है। स्टार्च एक नरम, सफेद, स्वादहीन पाउडर होता है।
हाथरस और आसपास के इलाके में सबसे ज्यादा मक्के की फसल से स्टार्च निकलता है। स्टार्च में करीब 2 फीसदी कलर मिलाए जाते हैं। ये कलर फूलों के अलावा कपड़े रंगने वाले भी होते हैं। जिनसे गुलाल सहित कई तरह का रंग तैयार होता है।
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