राज्य के सबसे बड़े अस्पताल की स्थिति दिन-ब-दिन सुधरने के बजाय बिगड़ रही है। इमरजेंसी में पहुंचे मरीजों को जहां तुरंत इलाज मिलना चाहिए, वहां उन्हें घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। नतीजा अनहोनी के रूप में सामने आ रहा है।
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बुधवार दोपहर करीब डेढ़ बजे 4 दिन का एक बिरहोर बच्चा बेहतर इलाज के लिए जमशेदपुर से रिम्स रेफर किया गया। बच्चा जन्म के समय रोया नहीं था और उसे सांस लेने में परेशानी हो रही थी। सेंट्रल इमरजेंसी में लाने के बाद कर्मियों ने बताया कि पीडियाट्रिक वार्ड जाकर पूछिए कि बेड खाली है या नहीं, उसके बाद वहीं एडमिट किया जाएगा। परिजन बेड का पता कर लौटे और बच्चे को एंबुलेंस से पीडियाट्रिक वार्ड ले गए।
डॉक्टरों ने बच्चे की जांच की और उसे मृत घोषित कर दिया। बताते चलें कि चार दिन पहले रीता सोबोर नाम की महिला ने एमजीएम जमशेदपुर में बच्चे को जन्म दिया था। नॉर्मल डीलीवरी थी, लेकिन बच्चे को सांस लेने में परेशानी थी। यह महज एक मामला है… लेकिन ऐसे दर्जनों मरीज हर दिन सिर्फ अस्पताल में भर्ती होने के लिए घंटों एंबुलेंस पर ही किसी तरह जिंदगी से जंग लड़ते हैं। इसमें कई जंग जीत जाते हैं, लेकिन कई जिंदगी की जंग हार भी जाते हैं, चार दिन के बिरहोर नवजात की तरह। बुधवार को रिम्स पहुुुुंचे चार दिन के बच्चे को अगर समय पर इलाज मिल जाता, तो हो सकता था कि उसकी जान बच जाती। पर ऐसा हो न सका। यह देखते हुए कि चार दिन का बच्चा एंबुलेंस में ऑक्सीजन सपोर्ट पर है, किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और एक मां की गोद सूनी हो गई।
गंभीर मरीजों को नहीं मिल रहा समय पर वेंटिलेटर…
जमशेदपुर से रिम्स के इमरजेंसी में लाए गए एमके गौतम को हार्ट के साथ-साथ किडनी, लीवर की भी समस्या थी। मरीज पहले से वेंटिलेटर सपोर्ट में था। रिम्स पहुंचने के बाद उसे डॉक्टरों ने बताया कि वेंटिलेटर खाली नही है।
कार्डियोलॉजी इमजेंसी में 4 बेड, हमेशा रहते हैं फुल…
रिम्स के कार्डियोलॉजी इमरजेंसी की हालत इतनी बुरी है कि यहां केवल 4 बेड ही हैं। 4 बेड का यह इमरजेंसी हमेशा फुल रहता है। जबतक इन्हें ऊपर वार्ड में शिफ्ट न किया जाए, तब तक ये बेड खाली नही होते।
प्रबंधन बोला- बच्चे को भर्ती करने में देरी नहीं हुई, बेड बढ़ाने पर हो रहा विचार
रिम्स के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. राजीव रंजन ने कहा कि कार्डियोलॉजी इमरजेंसी में 4 बेड को बढ़ाने की तैयारी चल रही है। विभाग अगर मैनपावर के लिए लिखेगा, तो उसपर भी विचार किया जाएगा। सेंट्रल इमरजेंसी की जहां तक बात है… यहां निजी अस्पतालों के रेफरल मरीजों की संख्या काफी ज्यादा है। बिरहोर बच्चे की मौत के मामले में डॉ. राजीव रंजन ने कहा कि बच्चे को भर्ती करने में देरी नही हुई थी। जबकि मौत के बाद उनके परिजनों को मोक्ष वाहन भी उपलब्ध कराए गए थे।
3 घंटे तक एंबुलेंस में रहा, फिर निजी अस्पताल में भर्ती
रात 10:05 बजे पहुंचा, नहीं मिला बेड, सुबह मौत…
गुमला के एक मरीज का इलाज रिम्स के समीप निजी अस्पताल में चल रहा है। मरीज के परिजन ने बताया कि पहले मरीज को सीने में दर्द होने पर रिम्स का हार्ट विभाग पहुंचा था। लेकिन वहां बेड खाली नही था। डॉक्टरों ने कुछ देर एंबुलेंस में रखने को कहा। लेकिन जब 3 घंटे बीत गए और उसके बाद भी बेड नही मिला, तो परिजन उसे लेकर निजी अस्पताल आ गए। अब वह ठीक है।
स्थिति यह है कि कार्डियोलॉजी इमरजेंसी में बेड खाली नही रहने पर रोगियों को सेंट्रल इमरजेंसी भेजा जाता है। लेकिन सेंट्रल इमरजेंसी में जैसे ही हार्ट की बीमारी के बारे बताने पर मरीज को बिना देखे ही वापस कार्डियोलॉजी विभाग ले जाने की सलाह देते हैं।
हजारीबाग से चार दिन पहले एक महिला को लेकर उनके परिजन रात 10:05 बजे कार्डियोलॉजी इमरजेंसी पहुंचे थे। एक जूनियर डॉक्टर ने मरीज को देखा। लेकिन बेड खाली नही होने के कारण सेंट्रल इमरजेंसी ले जाने को कहा। वहां से वापस कार्डियोलॉजी विभाग भेजा गया। 3 घंटें एंबुलेंस में रहने के बाद परिजन निजी अस्पताल ले गए। अगले दिन सुबह 11 बजे उसकी मौत हो गई।
वेंटिलेटर खाली होने के इंतजार में घंटों तक एंबुलेंस में रहने की नौबत
बेड खाली नहीं बताकर सेंट्रल इमरजेंसी भेजते हैं, फिर वापस…
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इलाज के इंतजार में बच्चे को गोद में लेकर एंबुलेंस में बैठा युवक।