Mahabharat War: महाभारत भारत के सबसे प्राचीन ग्रंथों में से एक है. महाभारत का युद्ध
हरियाणा में स्थित कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया. ये युद्ध कुरुक्षेत्र में 18 दिनों तक चला. अलग-अलग राज्यों के राजा अपनी इच्छा के अनुसार पांडवों या कौरवों के पक्ष में शामिल हुए. अब सवाल उठता है कि इतने सैनिकों के लिए आखिर खाने की व्यवस्था कैसे की गई. क्योंकि युद्ध के बाद रोजाना सैनिकों की संख्या कम हो जाती थी ऐसे में उस दौरान कैसे इन सब बातों का ध्यान रखा गया कि खाना बर्बाद न हो और सबको मिल भी जाए. आइए इस तथ्य के बारे में जानते हैं.
उडुपी राजा का फैसला
पांडवों और कौरवों के बीच यह एक विशाल युद्ध था, जिसमें सैकड़ों राजा दोनों पक्षों में शामिल हुए. मगर उडुपी के राजा ने किसी का भी पक्ष नहीं लिया. इसके बजाय, उन्होंने दोनों पक्षों के सैनिकों को भोजन कराने का जिम्मा लिया. यह युद्ध धर्म के अनुसार लड़ा गया था और हर दिन की लड़ाई के बाद दोनों पक्षों के सैनिक साथ बैठकर भोजन करते थे.
उडुपी राजा की अद्भुत समझ
हर रोज़ भोजन के दौरान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर के पास बैठते और उडुपी राजा उन्हें खुद भोजन परोसते. सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि उडुपी राजा हर दिन बिल्कुल उतना ही खाना बनवाते जितने सैनिक बचते थे, न कभी ज़्यादा, न कभी कम. पांडव इस बात से हैरान थे कि उन्हें हर दिन कितने सैनिक जीवित रहेंगे, यह कैसे पता चलता है.
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जब पांडवों ने रसोइयों से पूछा कि क्या कभी खाना बचता या कम पड़ता है, तो रसोइयों ने बताया कि उडुपी राजा को पहले से ही पता होता था कि कितने सैनिक ज़िंदा रहेंगे और उसी के अनुसार वे खाना बनवाते थे.
राजा का रहस्य
जब पांडवों ने उडुपी राजा से इसका रहस्य पूछा, तो उन्होंने बताया कि वे हर दिन श्रीकृष्ण को रोज़ उबली हुई मूंगफली परोसते और ध्यान से देखते कि कृष्ण कितने मूंगफली खाते हैं. इससे वे अगले दिन के मृतकों की संख्या का अनुमान लगाते थे. जैसे अगर श्रीकृष्ण ने 10 मूंगफली खाईं, तो अगले दिन 10,000 सैनिक मारे जाते. श्रीकृष्ण जितनी मूंगफली खाते उतने ही हज़ार सैनिकों की मृत्यु अगली सुबह निश्चित होती थी. उसी हिसाब से खाने की मात्रा तय होती थी और कभी खाना कम या ज़्यादा नहीं पड़ता था.
कृष्ण की इच्छा और हमारा भ्रम
यह जानकर पांडवों ने श्रीकृष्ण की प्रार्थना की और समझा कि असली युद्ध तो श्रीकृष्ण की इच्छा से हो रहा है, हम तो सिर्फ एक दिखावा कर रहे हैं.
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कहानी से सीख
यह घटना हमें सिखाती है कि संसार में हर काम श्रीकृष्ण की योजना से होता है. उनकी अनुमति के बिना एक तिनका भी नहीं हिल सकता. हम चाहे जितना भी सोचें कि हम सब कुछ नियंत्रित कर सकते हैं, लेकिन असली नियंत्रण भगवान के हाथों में होता है.