जमीनों पर माफिया के कब्जे की खबरें तो आपने आए दिन पढ़ी होंगी, लेकिन इंसान के साथ अब भगवान की जमीन पर भी माफिया का निगाह लग गई है। कब्जे से बचाने और छुड़ाने में अक्षम प्रशासन अब इन जमीनों की नीलामी की तैयारी कर रहा है। जिले में सरकारी अमले की देखरेख व
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इनके नाम पर ही राजस्व अभिलेख में 4,290 हेक्टेयर जमीन है। यह बीघा में 20,377 से ज्यादा है। भगवान के नाम वाली कृषि भूमि पर कहीं कोई खेती कर रहा है और कहीं कॉलोनी बस चुकी है। यह सब राजस्व अमले सांठगांठ के संभव नहीं है। इस जमीन सर्वे सरकारी अमले ने कभी नहीं कराया है।
माफी के मंदिर डबरा-भितरवार में ही 513 हैं। इनके पास 3,198 हेक्टेयर जमीन है। इनमें से 35% जमीन का रकबा 4 हेक्टेयर से अधिक अर्थात 20 बीघा से ज्यादा है। यहां जमीनों पर कब्जा न हो, इसलिए अब 4 हेक्टेयर से अधिक भूमि वाले मंदिरों से लगी कृषि भूमि नीलाम करने की तैयारी है। निर्णय क्षेत्र के तहसीलदार लेंगे। वे दोनों फसल सीजन के लिए जमीन नीलामी पर देंगे। इसके बदले जो पैसा आएगा, उसे मंदिर के खाते में जमा कराएंगे। इससे ही जर्जर मंदिर की मरम्मत होगी। वहीं लश्कर क्षेत्र के 3 मंदिरों की जमीन पर हुए अतिक्रमण की रिपोर्ट तहसीलदार तैयार कर चुके हैं। यहां पर बड़ी संख्या में मकान व दो कॉलोनी बस चुकी हैं।
2 उदाहरण से समझें जमीनों पर कब्जे को, अफसरों को पता ही नहीं
{ग्राम ककरधा में 80 बीघा जमीन राम जानकी मंदिर लश्कर के नाम पर है। यहां 50 साल से अधिक से गांव के 22 दबंग खेती कर रहे हैं। शिकायत हुई तो प्रशासन मौके पर पहुंचा। गेहूं की फसल खड़ी थी। पहले फसल उजाड़ने का तय हुआ फिर प्लान बदला। कृषि विभाग से मूल्यांकन कराने के बाद कब्जेधारियों से जमीन के किराए के रूप में 5 लाख रुपए लेने का तय हुआ। तहसीलदार मनीष जैन ने कहा कि पैसा अभी मंदिर के नाम जमा नहीं हुआ है। अभी यह साफ नहीं है कि लश्कर में कौन से मंदिर की यह भूमि है, पुजारी भी सामने नहीं आया है।
{काला सैयद के पास रामजानकी मंदिर खासगी बाजार की 9 बीघा जमीन माफिया ने कब्जा कर लिया था। यहां कॉलोनी बसाने की तैयारी है। यहां एसडीएम के नोटिस के बाद राजस्व व नगर निगम की टीम पहुंची। कुल 25 सर्वे नंबरों की इस जमीन पर बनी बाउंड्री को मशीनों से तोड़ दिया गया। कलेक्टर ने टीम के साथ मौका देखा। मौजूदा स्थिति यह है कि इस जमीन पर फिर काम चालू हो गया है। यहां पर रोड बन रही है। क्षेत्र के तहसीलदार विनीत गोयल ने कहा एक बार अतिक्रमण हटा चुके हैं, फिर हुआ तो कार्रवाई करेंगे।
सरकारी मंदिरों में प्राइवेट जैसी व्यवस्था नहीं: माफी मंदिरों की तुलना में प्राइवेट मंदिरों के प्रबंधन पर फंड अधिक रहता है। त्योहारों पर भीड़ वाले कार्यक्रम भी होते हैं। दूसरी तरफ अधिकतर माफी मंदिरों के पुजारियों को सरकार हर माह ढाई से पांच हजार रुपए मानदेय देती है। इसी से भोग, ड्रेस व दूसरे आयोजन होते हैं। कुछ मंदिरों पर भक्त भी मदद करते हैं।
नीलामी की राशि से मंदिर में कराए जाएंगे काम ^माफी मंदिरों की जमीन भगवान की मूर्ति के नाम, इसके प्रबंधक कलेक्टर होते हैं। जिन मंदिरों के पास कृषि भूमि है, फसल सीजन के हिसाब से नीलामी का प्रावधान है। जो पैसा आएगा उसका उपयोग मंदिर की मरम्मत व दूसरे काम में हो सकता है। जहां 10 एकड़ कृषि भूमि हैं, वहां नीलामी के लिए अंचल के कलेक्टर को पत्र लिखा है। -मनोज खत्री, संभाग आयुक्त