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मायावती 5 साल और बसपा की अध्यक्ष रहेंगी: भतीजे आकाश आनंद का कद बढ़ाया गया, 4 राज्यों का चुनाव प्रभारी बनाया – Lucknow News


मायावती को एक बार फिर से बसपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया है। लखनऊ में मंगलवार को पार्टी कार्यालय में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सतीश मिश्र ने उनके नाम का प्रस्ताव रखा। इसके बाद सभी सदस्यों ने हाथ उठाकर मायावती को अपना मुखिया चुना।

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मायावती 21 साल (18 सितंबर, 2003) से पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। हर 5 साल में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होता है। यानी 2029 तक मायावती राष्ट्रीय अध्यक्ष रहेंगी।

मायावती ने सोमवार को कहा था कि सक्रिय राजनीति से रिटायरमेंट का सवाल ही नहीं उठता है। मैं आखिरी सांस तक बहुजन मिशन के लिए काम करती रहूंगी।

मायावती के साथ बसपा के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद नजर आए।

मायावती ने भतीजे आनंद का कद बढ़ाया
मायावती के भतीजे आकाश आनंद अभी नेशनल कोऑर्डिनेटर बने रहेंगे। हालांकि, उनका कद और बढ़ाया गया है। नेशनल कोऑर्डिनेटर के साथ उन्हें 4 चुनावी राज्यों (हरियाणा, जम्मू-कश्मीर,झारखंड, महाराष्ट्र) का प्रभारी भी बनाया गया है।

सर्वसम्मति से मायावती बसपा प्रमुख चुनी गईं।

उपचुनाव से पहले बसपा चलाएगी व्यापक जनसंपर्क अभियान
बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया- उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर सभी पदाधिकारी को जिम्मेदारियां सौंप गईं। 10 सीटों पर व्यापक तरीके से जन संपर्क अभियान चलाया जाएगा।

उन्होंने बताया- कुछ सालों से जरूर हमारे वोटिंग परसेंटेज में कमी आई है, लेकिन ऐसा नहीं है कि बसपा के वोटर पूरी तरह से हमसे अलग हो गए हैं। अब बहन जी एक बार फिर से पूरी तरह से सक्रिय होती नजर आ रही हैं। इससे पूरे बहुजन समाज में एक उम्मीद है कि वो उनकी आवाज को एक बार फिर से उठाएंगी।

पार्टी कार्यकर्ताओं ने जिंदाबाद के नारे लगाए। हाथ उठाकर मायावती को अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना।

मायावती के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं- मायावती के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने का सबसे बड़ा कारण है- उनका अपने समुदाय के प्रति संवेदनशीलता का होना। इसके अलावा यूपी में 20% फीसदी वोट बैंक दलित वोटर्स का है, ऐसे में उनकी आवाज को समय-समय पर मायावती उठाती रहती हैं।

मायावती इस वक्त आरक्षण के मुद्दे पर केंद्र सरकार के साथ-साथ कांग्रेस और सपा पर हमलावर हैं। यही वजह है कि उन्होंने भारत बंद का न सिर्फ समर्थन किया, बल्कि बढ़-चढ़कर हिस्सा भी लिया। मायावती इसके जरिए बिखर चुके दलित वोट बैंक को दोबारा से एकजुट कर सकती हैं। बसपा में मायावती और आकाश के अलावा कोई चेहरा भी नहीं है। आकाश को अभी इतनी बड़ी जिम्मेदारी नहीं दे सकती थीं।

चलिए अब आपको मायावती की कहानी बताते हैं…

मायावती अपने घर की तीसरी बेटी थीं। उनके पिता एक बेटा चाहते थे इसलिए माया के पैदा होने पर वो दुखी हो गए।

15 जनवरी 1956 को दिल्ली में रहने वाले डाक-तार विभाग के क्लर्क प्रभुदास के घर एक बच्ची की किलकारी गूंजी। नाम रखा मायावती। मायावती अपने घर की तीसरी बेटी थीं। उनका कोई भाई नहीं था। घर में लगातार तीसरी बार लड़की के जन्म से पिता प्रभुदास दुखी हो गए। उन्हें अपना वंश आगे बढ़ाने के लिए एक बेटा चाहिए था।

मायावती के जन्म के बाद प्रभुदास के रिश्तेदारों ने उन्हें उनकी पत्नी राम रती के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया। उनका कहना था कि राम रती ने लगातार तीन बेटियां पैदा की हैं। अगर उन्हें लड़का चाहिए तो दूसरी शादी कर लें। प्रभुदास ने कुछ वक्त सोचा वो भी दूसरी शादी के लिया तैयार हो गए। मायावती के दादा मंगलसेन को जब यह बात बता चली तो वह नाराज हो गए और उन्होंने प्रभुदास को दूसरी शादी करने से रोक दिया।

मायावती पढ़ने में अच्छीं थीं, लेकिन उनके पिता ने सभी लड़कियों को सस्ते सरकारी स्कूल में, जबकि लड़कों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया।

10 साल की उम्र में मायावती ने छोटे भाई की जान बचाई
मायावती 5वीं क्लास में थीं। उनकी मां प्रेग्नेंट थीं। एक दिन अचानक उनको पेट में दर्द हुआ। पास के अस्पताल में एडमिट कराया गया। उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया। लेकिन जन्म के दो दिन बाद ही उस बच्चे को निमोनिया हो गया। उस वक्त मायावती के पिता घर के किसी काम से गाजियाबाद गए थे।

बच्चे के इलाज के लिए उसे 6 किलोमीटर दूर राजेंद्र नगर की सरकारी डिस्पेंसरी में ले जाना था। पिता घर में नहीं थे और मां बिस्तर से उठने की हालत में नहीं थीं। मायावती उस वक्त सिर्फ 10 साल की थीं। उन्हें कुछ भी समझ नहीं आया। वो उठीं। पिता का डिस्पेंसरी कार्ड उठाया। एक बोतल में पानी भरा और बच्चे को उठाकर चल पड़ीं। रास्ते में जब वो बच्चा रोता तो मायावती उसके मुंह में पानी की कुछ बूंदें डाल देती थीं।

रास्ता लंबा था। जब भी वो थक जातीं बच्चे को कभी दाएं कंधे की तरफ तो कभी बाएं कंधे की तरफ कर लेतीं। पसीने से तरबतर आखिर में वह अस्पताल पहुंच गईं। डॉक्टरों ने देखा तो हैरान रह गए। बच्चे का इलाज शुरू हुआ। इंजेक्शन लगे और तीन घंटे बाद उसकी हालत में सुधार आ गया। मायावती ने इसके बाद बच्चे को फिर से गोद में उठाया और पैदल ही घर के लिए निकल लीं। जब घर पहुंची तो रात के साढ़े नौ बजे थे।

स्कूल में पढ़ाती थीं मायावती; IAS बनने का सपना था
किताब ‘बहनजी’ में अजय बोस लिखते हैं कि मायावती के बाद प्रभुदास को लगातार 6 बेटे हुए। वह इस बात से फूले नहीं समाते थे कि वह 6 बेटों के पिता हैं। बेटों के आने से अपनी बेटियों के प्रति उनका व्यवहार भी बदल गया। सभी भाई-बहनों में मायावती पढ़ने में सबसे अच्छी थीं, लेकिन फिर भी उनके पिता में लड़की होने की वजह से उनका और बहनों का एडमिशन सस्ते सरकारी स्कूल में करवाया। जबकि बेटों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया गया।

इस भेदभाव से आहत मायावती ने ठान ली कि वो बहुत मेहनत करेंगी और बड़े होकर IAS बनेंगी। 1975 में उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस और इकॉनॉमिक्स से BA किया। उसके बाद BEd करके वो स्कूल में टीचर के तौर पर काम करने लगीं। दिन में पहले पढ़ातीं फिर घर जाकर UPSC की तैयारी करतीं। इसके साथ ही उन्होंने LLB की डिग्री भी हासिल की।

मायावती ने अपनी कमाई इकठ्ठा की, सूटकेस में कपड़े भरे और नेता बनने के लिए घर छोड़ दिया।

कांशीराम ने कहा- मैं तुम्हारे सामने IAS की लाइन लगा दूंगा

UPSC की तैयारी के वक्त ही दिल्ली के कांस्टीट्यूशनल क्लब में एक सम्मेलन हो रहा था। मायावती भी वहां मौजूद थीं। उस वक्त के स्वास्थ्य मंत्री राज नारायण भी थे। उनका भाषण शुरू हुआ। उन्होंने जैसे ही दलितों को हरिजन कहकर संबोधित किया मायावती नाराज हो गईं। वो स्टेज पर चढ़ीं और उन्होंने इस चीज का विरोध किया। वहां मौजूद लोगों ने मायावती के इस फायरब्रांड अवतार की खूब सराहना की।

सम्मेलन खत्म हुआ। हर जगह इस घटना की चर्चा होने लगी। कांशीराम को जब यह बात पता चली तो अगले ही दिन वो मायावती से मिलने उनके घर पहुंच गए। मायावती उस समय लालटेन की रोशनी में पढाई कर रहीं थीं। कांशीराम ने उनसे पूछा तुम क्या बनना चाहती हो?

मायावती बोलीं, “मैं IAS अफसर बनना चाहती हूं ताकि अपने समाज के लिए कुछ कर सकूं।” मायावती का यह जवाब सुनकर कांशीराम बोले, “मैं तुम्हें उस मुकाम पर ले जाऊंगा जहां दर्जनों IAS अफसर तुम्हारे सामने लाइन लगाकर खड़े होंगे। सही मायने में तुम तब अपने समाज की सेवा कर पाओगी। अब तुम तय कर लो, तुम्हें क्या करना है?”

मायावती ने कांशीराम की इस बात पर सोच-विचार किया। आखिरकार वो उनके आंदोलन से जुड़ने को तैयार हो गईं।

पहले तीन चुनावों में हार से शुरू हुआ मायावती का राजनीतिक सफर
साल 1984 में जब बहुजन समाज पार्टी यानी बसपा की स्थापना हुई, तब मायावती उसकी कोर टीम का हिस्सा थीं। उन्होंने साल 1984 में पहली बार कैराना लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं। उसके बाद 1985 में बिजनौर और 1987 में हरिद्वार से भी हार गईं।

फिर, 1989 के उपचुनाव में मायावती बिजनौर सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंच गईं। साल 1991 आया। देश में एक बार फिर लोकसभा चुनाव हुए। बसपा दो ही सीटें जीत सकी। मायावती बिजनौर और हरिद्वार दोनों जगह से चुनाव हार गईं।

साल 1995 में मायावती ने CM के तौर पर कुर्सी संभाली। वो देश की पहली दलित महिला थीं जो CM बनीं।

UP की पहली दलित महिला CM बनीं मायावती
साल 1995 में राज्यपाल ने मुलायम सिंह यादव को बाहर का रास्ता दिखा दिया और मायावती भाजपा के समर्थन के साथ UP की CM बन गईं। CM की कुर्सी तक पहुंचने वाली वो देश की पहली दलित महिला थीं। उस वक्त के PM पी.वी.नरसिम्हा राव ने इसे ‘लोकतंत्र का चमत्कार’ कहा था। इसके बाद धीरे-धीरे मायावती सियासत की मंझी हुई खिलाडी बन गईं। संघर्ष हुआ, सियासी गुणा-भाग हुआ, लेकिन मायावती का सटीक निशाना लगता रहा।

इसके बाद साल 1997, 2002 और 2007 में भी मायावती ने CM के तौर पर UP की कमान संभाली। इसी बीच साल 2003 में उन्हें BSP का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। तब से लेकर आज तक वो BSP की सबसे बड़ी नेता और UP की सियासत के बड़े चेहरे के रूप में जानी जाती हैं।

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