‘मानस नालंदा विश्वविद्यालय’ कथा के पांचवें दिन गुरुवार को मुरारी बापू ने नालंदा को ‘ध्यान भूमि, अहिंसा भूमि और विद्या की तपोभूमि’ कहते हुए एक गहन दर्शन प्रस्तुत किया।
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उनके अनुसार, यह भूमि शून्य और पूर्ण के बीच सेतु का काम करती है। इसे सत, संत और मन से प्रणाम। इन शब्दों में केवल श्रद्धा ही नहीं, बल्कि भारतीय चिंतन परंपरा की गहरी समझ भी झलकती है।
नालंदा के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करते हुए बापू ने कहा कि यह स्थान सदियों से ज्ञान की पीठ रहा है, जहां दुनिया भर के विद्वान आकर शिक्षा ग्रहण करते रहे हैं। आज भी यह भूमि उसी ज्ञान-गंगा को प्रवाहित करने की क्षमता रखती है। अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर में उपस्थित हजारों श्रोता मौजूद थे।
मुरारी बापू का सबसे महत्वपूर्ण संदेश था स्वीकार की संस्कृति को अपनाना। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि मेरा मिशन किसी को सुधारना नहीं, सबको स्वीकारने का है और स्वीकार के लिए बड़े दिल और विशाल दृष्टिकोण की जरूरत होती है। यह कथन आज के विभाजित समाज के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शन है।
बापू ने आज की दुनिया की समस्याओं की जड़ को उदारता की कमी में देखा। उनका मानना है कि धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र सब जगह लोग जिद पर अड़े हैं, कोई किसी को माफ नहीं करना चाहता। इस विश्लेषण में समकालीन भारत की सामाजिक स्थिति का सटीक चित्रण है।
राम कथा में उपस्थित श्रोता
शिक्षा नेतृत्व के 6 स्तंभ
कथा के दौरान बापू ने ‘आनंदा विश्वविद्यालय’ के संदर्भ में कुलपति के 6 आवश्यक गुणों का वर्णन किया, जो आधुनिक शिक्षा प्रणाली के लिए एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
पहला गुण औदार्य (उदारता) है, जिसका अर्थ है बिना पात्रता देखे भी प्रेम बरसाना। दूसरा माधुर्य है, जहां वाणी ऐसी हो जो मन को शहद-सा लगे। तीसरा सौंदर्य है, लेकिन यह देह का नहीं, बल्कि साधना और भजन में निहित सौंदर्य है।
चौथा गुण गंभीरता है, जो आंतरिक शांति और आत्मनिष्ठा का भाव लाती है। पांचवां धैर्य है, जो सुख-दुख में अडिग रहने और मेरुदंड-सा स्थिर होने की शक्ति देता है। छठा और अंतिम गुण शौर्य है, जो निर्णयों में निर्भीकता और आत्मबल प्रदान करता है।
अध्यात्म में गणित की सीमा
बापू का एक और महत्वपूर्ण कथन था कि परम अव्यवस्था का नाम ही परमात्मा है। अध्यात्म में कोई गणित काम नहीं आता। यह कथन आधुनिक शिक्षा प्रणाली में केवल तर्क और गणना पर आधारित दृष्टिकोण की सीमाओं को उजागर करता है।
शिक्षा की पद्धति पर प्रकाश डालते हुए बापू ने कहा कि शास्त्र का वास्तविक सार तब मिलता है जब वह गुरु के वचनों से सुना जाए। युवाओं के लिए उनका संदेश था कि अपने मन की खिड़कियां खुली रखें, ताकि शुभ विचार प्रवेश कर सकें।
रामकथा के प्रासंगिक संदेश
कथा के दौरान बापू ने भगवान राम के जन्म, नामकरण संस्कार और गुरुकुल यात्रा के प्रसंगों का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि कैसे गुरु वशिष्ठ जी के आश्रम में राम और उनके भाई विद्या प्राप्त करते हैं और उससे आगे उनके सदाचार, विनय और विवेक का विकास होता है।
बापू का कहना था कि “श्रेष्ठों को प्रणाम करने से आयु, यश, विद्या और बल बढ़ते हैं।” यह संदेश आज के युवाओं के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है, जो अक्सर पारंपरिक मूल्यों से दूर होते जा रहे हैं।
बापू का आशीर्वाद ग्रहण किया
कथा में एक विशेष क्षण तब आया जब अंतरराष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय के नव-नियुक्त कुलपति प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी अपनी पत्नी के साथ कथा में पहुंचे और बापू से आशीर्वाद लिया। उन्होंने कथा को विश्वविद्यालय के गौरव और भविष्य के लिए प्रेरणास्पद बताया।
प्रोफेसर चतुर्वेदी ने बापू द्वारा बताए गए छह कुलपति धर्मों को आत्मसात करने की बात कही। उन्होंने आग्रह किया कि बापू नालंदा विश्वविद्यालय परिसर में भी पधारें और भूमि को चरणस्पर्श करें।