जबलपुर में झंडा सत्याग्रह की 102वीं वर्षगांठ पर टाउन हॉल में विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कांग्रेस नेताओं ने राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दी और झंडा वंदन किया।
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18 मार्च 1923 को जबलपुर से शुरू हुए झंडा सत्याग्रह ने देश की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चौरी-चौरा की घटना के बाद असहयोग आंदोलन वापस लेने के पश्चात, कांग्रेस ने कई कमेटियों का गठन किया। इसी दौरान पंडित मोतीलाल नेहरू, विठ्ठलभाई पटेल और राजगोपालाचारी जैसे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों ने आजादी की अलख जगाई।
इतिहास में पहली बार किसी सरकारी या गैर-सरकारी इमारत पर तिरंगा फहराया गया। इस घटना की गूंज ब्रिटिश संसद तक पहुंची। ब्रिटिश शासन ने तुरंत झंडा फहराने पर पाबंदी लगा दी।
जबलपुर में स्वतंत्रता सेनानी बाल मुकुंद त्रिपाठी ने तत्कालीन नगर पालिका भवन (वर्तमान गांधी भवन) में झंडा फहराने की अनुमति मांगी। अंग्रेजों ने ब्रिटिश झंडा भी फहराने की शर्त रखी, जिसे सत्याग्रहियों ने ठुकरा दिया।
इसके विरोध में लगभग 350 स्वतंत्रता सेनानियों ने कड़ी सुरक्षा के बावजूद टाउन हॉल पर तिरंगा फहरा दिया। क्रुद्ध अंग्रेजों ने सेनानियों की पिटाई की। यह खबर पूरे देश में फैल गई। इसके बाद नागपुर में स्वतंत्रता सेनानी एकत्र हुए और झंडा सत्याग्रह का आंदोलन पूरे देश में फैल गया।