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कमला प्रसाद की जीत के बाद बक्सर में जश्न: भेलूपुर के लोगों को त्रिनिदाद-टोबैगो में PM पद की उम्मीद, 2012 में आई थी गांव – Buxar News


त्रिनिदाद-टोबैगो में यूनाइटेड नेशनल कांग्रेस की नेता कमला प्रसाद बिसेसर की चुनावी जीत से बक्सर में स्थित उनके पैतृक गांव भेलूपुर में खुशी की लहर है। गांव के लोग अबीर-गुलाल और मिठाइयों के साथ जश्न मना रहे हैं।

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बक्सर के इटाढ़ी प्रखंड में स्थित भेलूपुर गांव जिला मुख्यालय से 25 किमी और पटना से 140 किमी दूर है। यहां लगभग 1500 की आबादी में 200 परिवार निवास करते हैं। गांव में कमला बिसेसर का पुश्तैनी मकान आज भी मौजूद है। इस मकान पर ‘आवास: कमला प्रसाद बिसेसर, ग्राम भेलूपुर, जिला बक्सर’ लिखा हुआ है।

जश्न मनाते लोग।

कमला बिसेसर 2010 से 2015 तक त्रिनिदाद-टोबैगो की प्रधानमंत्री रह चुकी हैं। उन्होंने जनवरी 2012 में अपने गांव का दौरा किया था। उनके चचेरे भाई मुन्ना मिश्रा ने बताया कि उनके पिछले कार्यकाल में गांव में मूलभूत सुविधाएं बढ़ी थीं।

पूर्वज 123 साल पहले गए थे कैरेबियाई द्वीप

गांव की प्रभावती देवी, जो रिश्ते में कमला की भाभी हैं। उन्होंने बताया कि कमला ने अपनी पिछली यात्रा में कहा था कि उनके पूर्वज 123 साल पहले कैरेबियाई द्वीप गए थे। कमला ने अपनी सफलता का श्रेय अपने पूर्वजों और अपनी भूमि के लोगों के आशीर्वाद को दिया था। गांववासियों को उम्मीद है कि कमला बिसेसर एक बार फिर प्रधानमंत्री बनेंगी और अपने पैतृक गांव का दौरा करेंगी।

बक्सर में मौजूद उनका पुस्तैनी मकान।

गांव के निवासी सुरेंद्र यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद त्रिनिदाद के शोधकर्ता शम्सुद्दीन ने वहां के राष्ट्रीय अभिलेखागार के अभिलेखों की जांच की और पाया कि भवानी स्वरूप मिश्रा के बेटे राम लखन मिश्रा 24 अक्टूबर 1889 को त्रिनिदाद पहुंचे थे।

राम लखन और उनके वंशजों ने उस जहाज का टिकट सुरक्षित रखा है, जिस पर उन्होंने यात्रा की थी। बाद में शम्सुद्दीन ने अपने भारतीय सहयोगी एमएन तिवारी से संपर्क किया। तिवारी ने 1912 के भूमि अभिलेखों और 1969 के बिहार के राजस्व सीमा अभिलेखों की जांच की, ताकि पता चल सके कि भवानी के वंशज अभी भी भेलूपुर में रहते हैं।

बक्सर के घर में रखी कमला प्रसाद की तस्वीर।

2012 में आई थी गांव

इसके बाद भेलूपुर गांव में 11 जनवरी 2012 को कमला प्रसाद बिसेसर का दौरा तय हुआ और वो पहुंच गई। सुरेंद्र यादव बताते है कि जब वो पहुंची थी, तो उन्होंने कहा थी हमारे पूर्वज जब यहां से त्रिनिदाद-टोबैगो में गए तो यहां से कुछ लेकर नही गए। वे सिर्फ यहां के रामायण, गीता, जनेयू संस्कार,संस्कृति लेकर गए थे, जो आज भी वहां झलकता है।

उन्होंने कहा कि वो मजदूरी करने के लिए गए और पैसा कमाकर हमलोगों को पढ़ाया। जिसके बदौलत वो त्रिनिदाद-टोबैगो की प्रधानमंत्री बनी।



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